Monday, 24 August 2015

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भोपाल राज्य में स्थित है. ओंकारेश्वर  ज्योतिर्लिंग को भोपाल का सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्लिंग माना गया है. यह  ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश मेंपुणे जिले में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग के  बाद से दक्षिण भारत का प्रवेश प्रारम्भ होता है. जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती  है. और पहाडी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊँ का आकार बनता है. ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्रा के मुख से हुई है. इसका उच्चारण सबसे पहले जगत पिता देव  ब्रह्ना जी ने किया था. किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊँ नाम के उच्चारण के बिना नहीं किया जाता है. यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊँ का आकार लिए हुए है. इस कारण इसे  औंकारेश्वर नाम से जाना जाता है. ओंकारेश्वर मंदिर में108 शिवलिंग है. तथा यहां 33 करोडदेवताओं का निवास होने की मान्यता है. ओंकारेश्वर  ज्योतिर्लिंग में भी 2 ज्योतिर्लिंग है. जिसमें ओंकारेश्वर और दूसरा  ममलेश्वर ज्योतिलिंग है. भारत के कुल 12 ज्योतिर्लिंगों में से दो ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में  स्थित है. इसमें से एक उज्जैन में महाकालहै, तथा दूसरा ओंकारेश्वर खण्डवा  में है. खण्डवा में ज्योतिर्लिंग के दो स्वरुप है.दोनों स्वरुपों के दर्शन से मिलने वाला पुन्य फल समान है. दोनों को धार्मिक महत्व समान है.ओंकारेश्वर ज्योतिलिंग स्थापना कथा————खण्डवा में ज्योतिर्लिंग के दो रुपों की पूजा की जाती है. दोरुपों की  पूजा करने से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा इस प्रकार है. कि एक बार विन्ध्यपर्वत ने भगवान शिव की कई माहों तक कठिन तपस्या की उनकी इस  तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये. औरविन्ध्य  पर्वत से अपनी इच्छा प्रकट करने के लिए कहा. इस अवसर पर अनेक ऋषि और देव भी उपस्थित थे़. विन्ध्यपर्वत की इच्छा केअनुसार भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग  के दो भाग किए. एक का नाम ओंकारेश्वर रखा तथा दूसरा ममलेश्वर रखा.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया है. यहां  जाने के लिए श्रद्वालुओं को दो कोठरीयों से होकर जाना पडता है. और इन  कोठरियों में अत्यधिक अंधेरा रहता है. इन कोठरियों में सदैव जल भरा रहता  है. श्रद्वालुओं को इस जल से ही होकर जाना पडता है. भगवान शिव के उपासक यहां भगवान शिव का पूजन चने की दाल चढाकर करते है.  रात्रि में भगवान शिव का पूजन और रात्रि जागरण करने का अपना एक विशेष महत्व है. शिवरात्रि पर यहां विशेष मेलों का आयोजन किया जाता है. इसके अतिरिक्त  कार्तिक मास में पूर्णिमा तिथि मे भी यहां बहुत बडे मेले का आयोजन किया  जाता है. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मेंपांच केदारों के दर्शन करने केसमान फल  प्राप्त होता है. यहां दर्शन करने से केदारनाथ के दर्शन करने के समान फल  मिलता है.ओंकारेश्वर मंदिर महिमादेवस्थानसमं ह्येतत् मत्प्रसादाद् भविष्यति। अन्नदानं तप: पूजा तथा प्राणविसर्जनम्। ये कुर्वन्ति नरास्तेषां शिवलोकनिवासनम्।।[1]शिव पुराण में ओंकारेश्वार मंदिर की महिमा का गुणगान कियागया है. यह  स्थान अलौकिक तीर्थ स्थानों में आता है. इस तीर्थ स्थान के विषय में कहा  जाता है.कि इस तीर्थ स्थान में तप और पूजन करने से व्यक्ति की मनोकामना  अवश्य पूरी होती है. और व्यक्ति इस लोक के सभी भोगों को भोग कर परलोक में  विष्णु लोक को प्राप्त करता है.ओंकारेश्वार ज्योतिर्लिंग सेसंबन्धित एक अन्य कथाभगवान के महान भक्त अम्बरीष औरमुचुकुन्द के पिता सूर्यवंशी राजा  मान्धाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था.  उस महान पुरुष मान्धाता के नाम पर ही इस पर्वत का नाम मान्धाता पर्वत हो  गया. ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं  है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है. इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है.  प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है  और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है. इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर  भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है.कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत  ही ओंकाररूप है. परिक्रमा के अन्तर्गत बहुत से मन्दिरों के विद्यमान होने के कारण भी यह  पर्वत ओंकार के स्वरूप में दिखाई पड़ता है. ओंकारेश्वर के मन्दिर ॐकार में  बने चन्द्र का स्थानीय ॐ इसमें बने हुए चन्द्रबिन्दु का जो स्थान है, वही  स्थान ओंकारपर्वत पर बने ओंकारेश्वर मन्दिर का है. मालूम पड़ता है इस  मन्दिर में शिव जी के पास ही माँ पार्वती की भी मूर्ति स्थापित है. यहाँ पर भगवान परमेश्वर महादेव को चने की दाल चढ़ाने की परम्परा है.

1 comment: