संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को व्रत कहते हैं।
किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के
लिए अन्न या जल या अन्य तरह के भोजन या इन
सबका त्याग व्रत कहलाता है। व्रत धर्म का
साधन माना गया है। उपवास का अर्थ होता
है ऊपर वाले का मन में निवास। उपवास को व्रत
का अंग भी माना गया है।
व्रत के तीन प्रकार- 1.नित्य, 2.नैमित्तिक और
3.काम्य।
1.नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या
आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य
बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह
करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना
और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति
का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका
पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता
है।
2.नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी
प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा
पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार
के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण
प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते
हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।
3.काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए
किए जाते हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन-
समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के
लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।
* ये खाएं : दूध, घी, फल, फलों का ज्यूस और सूखे
मेवे।
* ये न खाएं : मांस, अंडे, फली के दाने, आलू से बने
पदार्थ, खट्टे और तले हुए, नमकीन व ठंडे पदार्थ।
उपवास के नाम पर फरियाली पकवान खाना...!
जैसे- खिचड़ी, पोटॅटो चिप्स, फरियाली
मिक्चर, साबूदाना बड़े, मूँगफली के नमकीन दाने
आदि दिन भर खाते रहने से लाभ के बजाय हानि
ही होती है।
* ये नियम पालें : व्रत के दौरान सेक्स, यात्रा,
क्रोध, भरपूर दृश्यों और वार्तालाप से परहेज रखें।
लड़ाई-झगड़े या अपशब्द कहने आदि से भी परहेज
करें। नियम से संध्या वंदन करें।
* सुंदरता के लिए नियत मात्रा में पंचगव्य यानि
गाय के दूध, दही आदि पांच पदार्थों से बने
खाद्य का सेवन करना चाहिए। वंश वृद्धि के
लिए नियमित दूध का सेवन, बुरे कर्म फल से मुक्ति
के लिए कठोर उपवास करने का व्रत लिया
जाता है। बहुत से लोग इस दौरान मात्र
प्रात:काल ही भोजन करते हैं, लेकिन कुछ लोग पूरे
माह भोजन नहीं करते। भोजन नहीं करना ही
कठोर व्रत है।
Monday, 24 August 2015
महत्वपूर्ण है श्रावण? व्रत रखना क्यों जरूरी?
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