नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रान्त के
द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी
पर अवस्थित है। यह स्थान गोमती द्वारका से
बेट द्वारका जाते समय रास्ते में ही पड़ता है।
द्वारका से नागेश्वर-मन्दिर के लिए बस,टैक्सी
आदि सड़क मार्ग के अच्छे साधन उपलब्ध होते हैं।
रेलमार्ग में राजकोट से जामनगर और जामनगर रेलवे
से द्वारका पहुँचा जाता है।
पौराणिक इतिहास
इस प्रसिद्ध शिवलिंग की स्थापना के सम्बन्ध में
इतिहास इस प्रकार है- एक धर्मात्मा,
सदाचारी और शिव जी का अनन्य वैश्य भक्त
था, जिसका नाम ‘सुप्रिय’ था। जब वह नौका
(नाव) पर सवार होकर समुद्र के जलमार्ग से कहीं
जा रहा था, उस समय ‘दारूक’ नामक एक भयंकर
बलशाली राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया।
राक्षस दारूक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का
अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर उसे
बन्दी बना लिया। चूँकि सुप्रिय शिव जी का
अनन्य भक्त था, इसलिए वह हमेशा शिव जी की
आराधना में तन्मय रहता था। कारागार में भी
उसकी आराधना बन्द नहीं हुई और उसने अपने अन्य
साथियों को भी शंकर जी की आराधना के
प्रति जागरूक कर दिया। वे सभी शिवभक्त बन
गये। कारागार में शिवभक्ति का ही बोल-
बाला हो गया।
जब इसकी सूचना राक्षस दारूक को मिली, तो
वह क्रोध में उबल उठा। उसने देखा कि कारागार
में सुप्रिय ध्यान लगाए बैठा है, तो उसे डाँटते हुए
बोला– ‘अरे वैश्य! तू आँखें बन्द करके मेरे विरुद्ध
कौन-सा षड्यन्त्र रच रहा है?’ वह ज़ोर-ज़ोर से
चिल्लाता हुआ धमका रहा था, इसलिए उस पर
कुछ भी प्रभाव न पड़ा।
घमंडी राक्षस दारूक ने अपने अनुचरों को आदेश
दिया कि सुप्रिय को मार डालो। अपनी
हत्या के भय से भी सुप्रिय डरा नहीं और वह
भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को पुकारने में
ही लगा रहा। उस समय अपने भक्त की पुकार पर
भगवान शिव ने उसे कारागार में ही दर्शन
दिया। कारागार में एक ऊँचे स्थान पर चमकीले
सिंहासन पर स्थित भगवान शिव ज्योतिर्लिंग
के रूप में उसे दिखाई दिये। शंकरजी ने उस समय
सुप्रिय वैश्य का अपना एक पाशुपतास्त्र भी
दिया और उसके बाद वे अन्तर्धान (लुप्त) हो गये।
पाशुपतास्त्र (अस्त्र) प्राप्त करने के बाद सुप्रिय
ने उसक बल से समचे राक्षसों का संहार कर डाला
और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ।
भगवान शिव के निर्देशानुसार ही उस शिवलिंग
का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा।
‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के दर्शन करने के बाद जो
मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी
कथा को सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो
जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक
सुखों को प्राप्त करता है-
एतद् य: श्रृणुयान्नित्यं नागेशद्भवमादरात्।
सर्वान् कामनियाद् धीमान्
महापातकनशनान्।।
उपर्युक्त ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर
नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा
ग्रन्थों में प्राप्त होती है। मतान्तर से इन लिंगों
को भी कुछ लोग ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते
हैं।
इनमें से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग निजाम
हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश ग्राम में अवस्थित हैं।
मनमाड से द्रोणाचलम तक जाने वाली रेलवे पर
परभणी नामक प्रसिद्ध स्टेशन है। परभनी से कुछ
ही दूरी पर पूर्णा जंक्शन है, जहाँ से रेलमार्ग पर
‘चारेंडी’ नामक स्टेशन है, जहाँ से लगभग 18
किलोमीटर की दूरी ‘औढ़ाग्राम’ है। स्टेशन से
मोटरमार्ग द्वारा ‘औढ़ाग्राम’ पहुँचा जाता
है।
इसी प्रकार उत्तराखंड प्रदेश के अल्मोड़ा जनपद में
एक ‘योगेश या ‘जागेश्वर शिवलिंग’ अवस्थित है,
जिसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ बताया जाता
है। यह स्थान अल्मोड़ा से लगभग 25 किलोमीटर
उत्तर पूर्व की ओर है, जिसकी दूरी नैनीताल से
लगभग 100 किलोमीटर है। यद्यपि शिव पुराण के
अनुसार समुद्र के किनारे द्वारका पुरी के पास
स्थित शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में
प्रमाणित होता है।
Friday, 7 August 2015
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
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