Thursday, 20 August 2015

श्रावण मास में व्रत रखना क्यों जरूरी?

हिन्दुओं के 10 प्रमुख कर्तव्य है:- संध्योपासन,
व्रत-उपवास, तीर्थ, दान, उत्सव (संक्रांति),
यज्ञ, संस्कार, सेवा, वेद पाठ और धर्म प्रचार।
उपरोक्त में पांच को सबसे ज्यादा महत्व मिला
हुआ है। उक्त में से व्रत की बात करें तो यहां
श्रावण मास में व्रत रखना सबसे श्रेष्ठ माना
गया है। यह पाप को मिटाने वाला और
मनोकामना की पूर्ति करने वाला माह है।
जिस तरह गुड फ्राइडे के पहले ईसाइयों में 40 दिन
के उपवास चलते हैं और जिस तरह इस्लाम में रमजान
माह में रोजे (उपवास) रखे जाते हैं उसी तरह
हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत
रखने वाला माह माना गया है। सिर्फ
सोमवार ही नहीं पूरे श्रावण माह में
निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत
दी गई है। इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों
का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों
व्रतों से दूर रहना चाहिए।
श्रावण व्रत : व्रत ही तप है। यह उपवास भी है।
हालांकि दोनों में थोड़ा फर्क है। व्रत में
मानसिक विकारों को हटाजा जाता है तो
उपवास में शारीरिक। इन व्रतों या उपवासों
को कैसे और कब किया जाए, इसका अलग नियम
है। नियम से हटकर जो मनमाने व्रत या उपवास
करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। व्रत से
जीवन में किसी भी प्रकार का रोग और शोक
नहीं रहता। व्रत से ही मोक्ष प्राप्त किया
जाता है। श्रावण माह को व्रत के लिए नियुक्त
किया गया है। श्रावण मास में उपाकर्म व्रत
का महत्व ज्यादा है। इसे श्रावणी भी कहते हैं।
श्रावण माह में व्रत रखना जरूरी है। यह हिन्दुओं
का सबसे पवित्र माह है। इस माह में प्रत्येक
हिन्दु का कर्तव्य है कि वह व्रत रखें और नियमों
का पालन करें। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो
वह जीवन में संकटों से घिरा रहेगा और यह भी
माना जाएगा कि उसे हिन्दू धर्म की परवाह
नहीं। यदि वह गंभीर रोग से ग्रस्त है, कमजोर है
या किसी विशेष यात्रा पर है तब ऐसे में व्रत
नहीं रखना क्षमा योग्य है।

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