Wednesday, 12 August 2015

नादनिराजनंम भजन संग्रह 1

नादनिराजनंम भजन संग्रह

1
( नाम
तुम्हारा तारणहारा )।
नाम तुम्हारा तारण हारा, कब तेरा दर्शन
होगा,
जिसकी रचना इतनी सुंदर , वो कितना सुंदर
होगा।
नाम तुम्हारा...........................................
सुर नर मुनि जन जिन चरणों में निश दिन ध्यान
लगाते हैं,
जो भी तुम्हारे दर पे आते हैं , मन वाँछित फल पाते
हैं,
आत्म निधि को पाने हेतु, दर पे तेरे आना
होगा ,
जिसकी रचना इतनी सुंदर , वो कितना सुंदर
होगा ।
नाम
तुम्हारा..................................................।
दीन दयाल दया के सागर , जग में तुम्हारा नाम
है ,
तुम बिन मेरे बालकृष्ण अब , कोई नहीं हमारा है ,
(आत्मनिधि को पाने हेतु )भवसागर पार करने हेतु
तेरा ही शरणा होगा ,
जिसकी रचना इतनी सुंदर , वो कितना सुंदर
होगा ।
नाम
तुम्हारा..................................................।

2

हे जग त्राता विश्व विधाता , हे सुख शांति
निकेतन हे ।
जग आश्रय जग पति जग वन्दन , अनुपम अलख निरंजन
हे।
हे जग त्राता विश्व विधाता , हे सुख शांति
निकेतन हे
प्रेम के सिन्धु , दीन के बन्धु , दु:ख दारिद्र
विनाशन हे ।
हे जग त्राता विश्व विधाता , हे सुख शांति
निकेतन हे ।
नित्य अखंड अनंन्त अनादि , पूरण ब्रह्म सनातन हे

हे जग त्राता विश्व विधाता , हे सुख शांति
निकेतन हे।
प्राण सखा प्रति पालक त्रिभुवन, जीवन के
अवलंबन हे।
हे जग त्राता विश्व विधाता , हे सुख शांति
निकेतन हे ।

3
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोलदरं
वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं
रामचन्द्रं भजे ।।
( अच्युत ,केशव ,राम नारायण ,कृष्ण ,दामोदर
,वासुदेव हरि श्रीधर , माधव , गोपिकावल्लभ
तथा जानकी नायक रामचन्द्रजी को मैं भजता
हूँ ।)
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं
राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरम् देवकीनन्दनं नन्दजं
सन्दधे ।।
( अच्युत , केशव , सत्यभामापति , लक्ष्मीपति ,
श्रीधर, राधिकाजी द्वारा आराधित ,
लक्ष्मीनिवास , परम सुन्दर , देवकीनन्दन ,
नन्दकुमार का चित्त से ध्यान करता हूँ।)
विष्नवे जिष्नवे शंखिने चक्रिने रुक्मणीरागिणे
जानकी जानये ।
वल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नम:।।
( जो विभु हैं, विजयी हैं, शंख - चक्रधारी हैं,
रुक्मणीजी के परम प्रेमी हैं, जानकीजी जिनकी
धर्मपत्नी हैं तथा जो ब्रजांगनाओं के
प्राणाधार हैं उन परम पूज्य , आत्मस्वरूप
कंसविनाशक मुरलीधर को मैं नमस्कार करता हूँ।
कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते
वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक
द्रौपदीरक्षक ।।
( हे कृष्ण! हे गोविन्द ! हे राम! हे नारायण! हे
रमानाथ ! हे वासुदेव ! हे अजेय ! हे शोभाधाम ! हे
अच्युत ! हे अनन्त ! हे माधव ! हे अधोक्षज
( इन्द्रियातीत ) ! हे द्वारिकानाथ ! हे
द्रौपदीरक्षक ! ( मुझ पर कृपा कीजिये ) ।
राक्षसक्षोभित: सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारण: ।
लक्षमणेनान्वितो वानरै: सेवितो
अगस्त्यसम्पूजितो राघव: पातु माम् ।।
( राक्षसों पर अति कुपित , श्री सीताजी से
सुशोभित , दण्डकारण्य की भूमि की पवित्रता
के कारण , श्री लक्षमणजी द्वारा अनुगत,
वानरों से सेवित , श्री अगस्त्यजी से पूजित
रघुवंशी श्री राम मेंरी रक्षा करें।
धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा
कंसहृद्वंशिकावादक: ।
पूतनाकोपक: सूरजाखेलनो बालगोपालक: पातु
मां सर्वदा ।।
( धेनुक और अरिष्टासुर आदि का अनिष्ट करने
वाले , शत्रुओं का ध्वंस करने वाले , केशी और कंस
का वध करने वाले , वंशी को बजाने वाले , पूतना
पर कोप करने वाले , यमुनातट विहारी
बालगोपाल मेंरी सदा रक्षा करें ।)
विद्युदुद्योत - वत्प्रस्फुर - द्वाससं
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोर:स्थलं
लोहितांघ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ।।
( विद्युत्प्रकाश के सदृश जिनका पीताम्बर
विभासित हो रहा है , वर्षाकालीन मेंघों के
समान जिनका अति शोभायमान शरीर है ,
जिनका वक्ष:स्थल वनमाला से विभूषित है और
चरणयुगल अरुणवर्ण हैं उन कमलनयन श्रीहरि को मैं
भजता हूँ ।)
कुन्चितै: कुन्तलैभ्रार्जमानाननं रत्नमौलिं
लसत्कुण्डलं गण्डयो: ।
हारकेयूरकं कंकणप्रोज्जवलं किंकिणीमंजुलं
श्यामलं तं भजे ।।
जिनका मुख घुंघराली अलकों से सुशोभित
हो रहा है , उज्जवल हार , केयूर
( बाजूबन्द ) ,कंकण और किंकिणी कलाप से
सुशोभित उन मंन्जुलमूर्ति श्रीश्यामसुन्दर को
भजता हूँ ।
अच्युतस्याष्टकं य: पठेदिष्टदं प्रेमत: प्रत्यहं
पुरुष: सस्पृहम् ।
वृत्तत: सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य वश्यो
हरिर्जायते सत्वरम् ।।
( जो पुरूष इस अति सुन्दर छन्द वाले और
अभीष्ट फलदायक अच्युताष्टक को प्रेम और
श्रद्धा से नित्य पढ़ता है , विश्वम्भर
विश्वकर्ता श्रीहरि शीघ्र ही उसके
वशीभूत हो जाते हैं , उसकी समस्त कामनाओं
की पूर्ति होती है ।

4

ँ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे ,
भक्तन के दु:ख सारे पल में दूर करे ।ऊँ जय ।
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी ,
जय रस रास विहारी , जय जय गिरधारी ।ऊँ
जय।
बरू किंकिन कटि सोहत कानन में बाला ,
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ।ऊँ जय ।
वेणु मधुर कर सोहै , शोभा अति न्यारी ,
संग लसै छवि सुंदर , राधा की प्यारी ।ऊँ जय

दीन सुदामा तारे , दरिद्रों के दु:ख टारे ,
गज के फंद छुड़ाए , भव सागर तारे ।ऊँ जय ।
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रूप धरे ,
पाहन से प्रभु प्रगटे , जम के बीच परे ।ऊँ जय।
केशी कंस विदारे , नल कूबर तारे ,
दामोदर छवि सुंदर ,भगतन के प्यारे ।ऊँ जय।
काली नाग नथैया ,नटवर छवि सोहे ,
फ़न-फन नाचा करते नागन मन मोहे ।ऊँ जय।
बंधन काटि गिराए , माता शोक हरे ,
द्रुपद सुता पत राखी, करुणा लाज भरे ।ऊँ जय।
भक्तन के दु:ख सारे , पल में दूर करे ।
ऊँ जय श्री कृष्ण हरे ।

5

मस्तक ।। दोहा ।।
वंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुन अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम।।
पूर्ण इन्दु अरविन्द मुख,पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ।।
।।चौपाई ।।
जय यदुनंदन जय जगवन्दन । जय वसुदेव देवकी नन्दन।।
जय यसुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग
तारे।।
जय नटनागर नाथ नथइया।कृष्ण कन्हैया धेनु
चरइया।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन
कष्ट निवारो।।
वंशी मधुर अधर धरि टेरी । होवे पूर्ण विनय यह
मेरी।।
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत
की राखो।।
गोल कपोल चिबुक अरुनारे। मृदु मुस्कान
मोहिनी डारे।।
रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट
बैजन्ती माला ।।
कुण्डल श्रवण पीत पट आछे । कटि किंकणी काछन
काछे।।
नील जलज सुन्दर तनु सोहै । छवि लखि सुर नर
मुनि मन मोहै।।
मस्तक तिलक अलक घुंघराले ।आओ कृष्ण बांसुरी
वाले ।।
करि पय पान , पूतनहिं तारयो । अका बका
कागा सुर मारयो।।
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भइ शीतल,
लखतहिं नंदलाला।।
सुरपति जब ब्रज चढयो रिसाई । मूसर धार
वारि वर्षाई ।।
लखत -लखत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नख
धारि बचायो ।।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महं चौदह
भुवन दिखाई ।।
दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल
मंगायो ।।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दे
निर्भय कीन्हें ।।
करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण
करि अभिलाषा ।।
केतिक महा असुर संघारयो । कंसहि केस पकड़ि
दै मारयो ।।
मात-पिता की बंदि छुड़ाई । उग्रसेन कहं
राज दिलाई। ।
महि से मृतक छहों सुत लायो ।मातु देवकी शोक
मिटायो ।।
भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाए षट् दस सहस
कुमारी ।।
दे भीमहिं तृणचीर इशारा । जरासंध राक्षस
कहं मारा ।।
असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट
निवारयो ।।
दीन सुदामा के दु:ख टारयो । तंदुल तीन मूठि
मुख डारयो ।।
प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के
मेवा त्यागे ।।
लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम
दीन हितकारी ।।
भारत में पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं
बल थांके ।।
निज गीता के ज्ञान सुनाए । भक्तन हृदय
सुधा वर्षाए। ।
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई
बजा कर ताली ।।
राणा भेजा साँप पिटारी ।
शालिग्राम बने बनवारी ।।
निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।उर ते
संशय सकल मिटायो ।।
तव शत निन्दा करि तत्काला । जीवन मुक्त
भयो शिशुपाला ।।
जवहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ
लाज अब जाई ।।
तुरतहिं बसन बने नन्दलाला । बढ़े चीर भए अरि
मुंह काला ।।
अस अनाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भँवर
बचावत नइया ।।
सुंदरदास आस उर धारी। दयादृष्टि
कीजै बनवारी ।।
नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि
अपराध हमारो ।।
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण
कन्हैया की जै। ।
।। दोहा ।।
यह चालीसा कृष्ण का , पाठ करे उर
धारि ।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि फल , लहै
पदार्थ चारि ।।

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