Saturday 17 September 2016

पित्री दोष और निवारण

    
         
1. अध्यात्म से रिश्ता
कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा रहे हैं परंतु कभी-कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।

2. ज्योतिष विद्या
ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली को प्रभावित कर सकता है।

3. पूर्वज की मृत्यु
जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में झलकता है।

4. पितृदोष
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।

5. सूर्य और मंगल
ज्योतिष विद्या में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है।

6. श्राद्ध कर्म
हिन्दू शास्त्रों में यह कहा गया है कि मृत्यु के पश्चात पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म की मृतक को वैतरणी पार करवाता है। ऐसे में यह माना गया है कि जिस व्यक्ति का अपना पुत्र ना हो तो उसकी आत्मा कभी मुक्त नहीं हो पाती। इसी वजह से आज भी लोग पुत्र प्राप्ति की कामना रखते हैं।

7. पुत्र का ना होना
हालांकि पुत्र के ना होने की हालत में आजकल पुत्री के हाथ से अंतिम संस्कार किया जाने लगा है लेकिन यह शास्त्रों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिन लोगों का अंतिम संस्कार अपने पुत्र के हाथ से नहीं होता उनकी आत्मा भटकती रहती है और आगामी पीढ़ी के लोगों को भी पुत्र प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

8. ज्योतिषीय कारण
पितृदोष के बहुत से ज्योतिषीय कारण भी हैं, जैसे जातक के लग्न और पंचम भाव में सूर्य, मंगल एवं शनि का होना और अष्टम या द्वादश भाव में बृहस्पति और राहु स्थित हो तो पितृदोष के कारण संतान होने में बाधा आती है।

9. लग्न में ग्रह
अष्टमेश या द्वादशेश का संबंध सूर्य या ब्रहस्पति से हो तो व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, इसके अलावा सूर्य, चंद्र और लग्नेश का राहु से संबंध होना भी पितृदोष दिखाता है। अगर व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु का संबंध पंचमेश के भाव या भावेश से हो तो पितृदोष की वजह से संतान नहीं हो पाती।

10. पिता की हत्या
यदि कोई व्यक्ति अपने हाथ से अपनी पिता की हत्या करता है, उन्हें दुख पहुंचाता या फिर अपने बुजुर्गों का असम्मान करता है तो अगले जन्म में उसे पितृदोष का कष्ट झेलना पड़ता है। जिन लोगों को पितृदोष का सामना करना पड़ता है उनके विषय में ये माना जाता है कि उनके पूर्वज उनसे अत्यंत दुखी हैं।

11. पितृदोष का निवारण
पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।

12. अमावस्या को श्राद्ध
अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

13. पीपल को जल
बृहस्पतिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है।

14. सूर्य को जल
शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन जातक को घर में पूरे विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित कर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल लेकर, उस जल में कोई लाल फूल, रोली और चावल मिलाकर, अर्घ देना चाहिए।

15. पूर्वजों से आशीर्वाद
शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शाम के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार वारकर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से मांफी मांगकर उनसे आशीर्वाद मांगे।

16. गाय को गुड़
अपने भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते के लिए भोजन अवश्य निकालें और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो गुड़ खाकर ही निकलें। संभव हो तो घर में भागवत का पाठ करवाएं।

17. पूर्वजन्म
हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए।