Saturday 31 October 2015

भगवान परशुराम के जीवन से जुडी रोचक बातें । हरेश जोशी जकशिया

भगवान परशुराम के जीवन से जुडी रोचक बातें
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम का जन्म हुआ था। आज हम आपको भगवान परशुराम से संबंधित कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है

1.अपने शिष्य भीष्म को नहीं कर सके पराजित
महाभारत के अनुसार महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म ने भगवान परशुराम से ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्राप्त की थी। एक बार भीष्म काशी में हो रहे स्वयंवर से काशीराज की पुत्रियों अंबा, अंबिका और बालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए थे। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है तब भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया, लेकिन हरण कर लिए जाने पर उसने अंबा को अस्वीकार कर दिया।

तब अंबा भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। अंबा की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा, लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तब परशुराम और भीष्म में भीषण युद्ध हुआ और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
[30/10 6:48 PM] Parimal Dwarka: 2. ऐसे हुआ भगवान परशुराम का जन्म
महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना।

किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।

तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों के समान था।

3. किया श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन
महाभारत के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।
4. नहीं हुआ था श्रीराम से कोई विवाद

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। धनुष टूटने की आवाज सुनकर भगवान परशुराम भी वहां आ गए। अपने आराध्य शिव का धनुष टूटा हुआ देखकर वे बहुत क्रोधित हुए और वहां उनका श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद भी हुआ।

जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे। तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ा कर छोड़ दिया। यह देखकर परशुराम को भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया और वे वहां से चले गए।

5. क्यों किया माता का वध?

एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा चित्ररथ भी वहां जलविहार कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। जमदग्रि ने रेणुका को देखकर उसके मन की बात जान ली और अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु मोहवश किसी ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया।

तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे अपने फरसे से उनका सिर काट डाला। ये देखकर मुनि जमदग्रि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं।
[6. क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध?

एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमदग्रि मुनि के आश्रम से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।

7. इसलिए किया क्षत्रियों का संहार?
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्रि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहिन कर दिया।

8. ब्राह्मणों को दान कर दी संपूर्ण पृथ्वी

महाभारत के अनुसार परशुराम का ये क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें इस घोर कर्म से रोका। तब उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद कर दिया और सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे।

9. परशुराम का कर्ण को श्राप

महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। कर्ण भी उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।

नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे। इस प्रकार परशुरामजी के श्राप के कारण ही कर्ण की मृत्यु हुई।
10. राम से कैसे बने परशुराम?

बाल्यावस्था में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे। जब राम कुछ बड़े हुए तो उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्रि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा।

राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।

11. फरसे से काट दिया था श्रीगणेश का एक दांत

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।

12. ये थे परशुराम के भाइयों के नाम

ऋषि जमदग्रि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु था।

13. अमर हैं परशुराम
हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। इनमें से एक भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम भी हैं-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।

Saturday 24 October 2015

અમુક વસ્તુઓમાં હજુ મોનોપોલી છે ઈશ્વરની અને રહેશે સદા…!!!

“ઈશ્વર ધી બેસ્ટ ઍન્જિનિયર”

આંખરૂપી કૅમરા ગોઠવ્યા,

કાનરૂપી રિસીવર આપ્યા,

હાર્ડડિસ્ક મૂકી દિમાગમાં,

હ્રદયરૂપી ઍન્જિન મૂક્યુ,

લોહીને બનાવ્યુ ઈંધણ,

ને ઍન્જિન જ ટાંકી ઈંધણની,

ને પછી લાંબી પાઈપલાઈન,

હાડમાંસથી બૉડી બનાવી,

કવર ચઢાવ્યુ ચામડીનુ,

કીડનીરૂપી ફિલ્ટર મૂક્યુ,

હવાની લેવડદેવડ માટે ફેફસા,

જે ઇનપુટની લાઈન મૂકી  તે જ

આગળ જઈ આઉટપુટની લાઈન,

વેદનાને વહાવવા આંસુ બનાવ્યા,

અને આ શરીરની બધીજ ક્રીયાઓ માટે 

કેમિકલ સિગ્નલ્સ બનાવ્યા,

લાખ લાખ વંદન છે તમને !

આ બધુ તો માણસ શીખી ગયો ઈશ્વરથી,

પણ  લાગણી કેવી રીતે બનાવવી,

પ્રેમ કેવી રીતે બનાવવો,

આત્મા ક્યાંથી લાવવો ,

અમુક વસ્તુઓમાં હજુ  મોનોપોલી છે ઈશ્વરની અને રહેશે સદા…!!!

—અજ્ઞાત

Friday 23 October 2015

इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | विशाल बालाजी

1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |

इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |

नोट : -अपने बच्चों को बार बार पढ़वाये और उन्हे हिन्दू धर्म की महता के बारे में समझायें |

बोलिये सियावर रामचन्द्र की जय

तंत्र यन्त्र और मंत्र चिंतन संकलन परिमल ठाकर


         

यह हिन्दूओं की एक उपासना पद्धति है। भगवान शिव इसके जन्मदाता हैं। वैसे तो तंत्र की उत्पत्ति सनातन काल से ही है लेकिन धीरे-धीरे यह लुप्त होती चली गई। नवीं सदी में इस पद्धति ने बुद्धो द्वारा चीन में प्रवेश किया फिर वहाँ से यह जापान पहुँची। इस प्रकार सारे एशिया में इसका प्रचार हुआ। इसके सिद्धांत को गुप्त रखने का प्रावधान है। झाड -फूक एवं जादू-टोने से भी इसका गहरा संबन्ध है। इसे कला भी कहा जा सकता है।

संस्कृत के ‘तन’ धातु से तंत्र शब्द की उत्पत्ति हूइ है। ‘तन’ का अर्थ- तनना विस्तार एवं र्सवव्यापकता है। ‘त्र’ का मतलब- त्राण यानी मुक्ति करने वाला या लाभ करने वाला। कुल मिलाकर तंंत्र का मतलब – जिसके द्धारा र्सवकल्याण किया जा सके वही तंत्र है।

यंत्र

यंत्र कई प्रकार के होते हैं। इसे सामर्थ एवं आवश्यकता के अनुसार स्वर्ण रजत, ताम्र या भोजपत्र पर शुभ मुहूर्त्त में बनाया जाता है। यंत्रों में बीन्दु, त्रिभुज, चर्तुभुज, स्वस्तिक, कमल, पदमदल इत्यादि बने होते है।

यंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करके साधक अपने इष्टदेव या किसी लोक-परलोक की आत्मा या शक्ति से संबन्ध स्थापित कर सकते हैं। महर्षि दत्तात्रेय को यंत्र विद्या का जनक माना जाता है। क्योंकि भगवान शिव ने सारे मंत्र-तंत्र को दानवों के दुरुपयोग से बचाने के लिए कीलित कर दिया। तो फिर महर्षि ने ज्यामितीय कला के द्वारा वृत्त, त्रिकोण, अर्द्धवृत्त, चतुष्कोण को आधार बनाकर बीज मंत्रों की सहायता से इन शक्तियों को रेखांकित करके विशिष्ट पूजा-यंत्रों का आविष्कार किया। गुरु गोरखनाथ एवं शंकराचार्य का समय तंत्र विद्या का स्वणिर्म काल था।

मंत्र

मंत्र शब्द मन एवं त्र के संयोग से बना है। यहाँ मन का अर्थ- विचार है और त्र का अर्थ-मुक्ति है। यानी गलत विचारों से मुक्ति। वैसे मंत्रों का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं होता है। मंत्र विशिष्ट शब्दों का एक जोडÞ है। जिसका उच्चारण विशिष्ट ध्वनि, तरंग, कंपन एवं  अदृश्य आकृतियों को जन्म देता है। इस प्रकार मंत्र द्वारा निराकार शक्तियाँ साकार होने लगती हैं। मंत्र के लगातार जाप से उत्पन्न संवेग वायुमंडल में छिपी शक्तियों को नियंत्रित करता है और उस पर साधक का प्रभाव एवं अधिकार हो जाता है।

मंत्रों की उत्पति वेदों और पुराणों से हूइ है। वेदों का हर श्लोक एक मंत्र है। वेद के अनुसार मंत्र दो प्रकार के होते हैं।

१. ध्वन्यात्मक २. कार्यात्मक

ध्वन्यात्मक मंत्रों का कोई विशेष अर्थ नहीं होता है। इसकी ध्वनि ही बहुत प्रभावकारी होती है। क्योंकि यह सीधे वातावरण और शरीर में प्रवेश कर एक अलौकिक शक्ति का अनुभव कराती है। इस प्रकार के मंत्र को बीज मंत्र कहते है।

जैसे- ॐ, ऐं, ह्रीं, क्लीं, श्रीं, अं, कं, चं आदि।

कार्यात्मक मंत्रों का उपयोग पूजा पाठ में किया जाता है। जैसे - नमः शिवाय या श्री गणेशायः नमः इत्यादि।
प्रत्येक मंत्र का अलग-अलग उपयोग एवं प्रभाव है। यहाँ मैं केवल ‘ओम’ की व्याख्या करता हूँ। इस मंत्र का संबन्ध नाभि से है। नाभि से जो श्वास के साथ उच्चारण होता है वह सीधे हमारी कुंडलिनी तक पहुंचता है। वैसे मंत्रों का उच्चारण मानसिक रुप से ही लाभकारी होता है लेकिन बीज मंत्रों का उच्चारण ध्वनि के साथ करना लाभकारी होता है। दोनों आँखों के मध्य के भाग को तीसरा नेत्र कहा जाता है। यहाँ पर छठा चक्र अवस्थित है। इस बीज मंत्र के प्रभाव से नाभि से लेकर मस्तिष्क के भीतर बने सहस्त्र दल कमल तक एक स्वरूप अपने आप बनता है। इसकेे लगातार उच्चारण से सिद्धि प्राप्त होती है।  

27 नक्षत्रों के वेद मंत्र संकलन परिमल ठाकर

वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों के वेद मंत्र निम्नलिखित हैं :

अश्विनी नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम । ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।

भरणी नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्य्यस्यत्वा तपसे देवस्यत्वा सवितामध्वा
नक्तु पृथ्विया स गवं स्पृशस्पाहिअर्चिरसि शोचिरसि तपोसी।

कृतिका नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ अयमग्नि सहत्रिणो वाजस्य शांति गवं
वनस्पति: मूर्द्धा कबोरीणाम । ॐ अग्नये नम: ।

रोहिणी नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ ब्रहमजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सूरुचोवेन आव: सबुधन्या उपमा
अस्यविष्टा: स्तश्चयोनिम मतश्चविवाह ( सतश्चयोनिमस्तश्चविध: )
ॐ ब्रहमणे नम: ।

मृगशिरा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ सोमधेनु गवं सोमाअवन्तुमाशु गवं सोमोवीर: कर्मणयन्ददाति
यदत्यविदध्य गवं सभेयम्पितृ श्रवणयोम । ॐ चन्द्रमसे नम: ।

आर्द्रा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: ।
ॐ रुद्राय नम: ।

पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स पिता स पुत्र:
विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम अदितिर्रजनित्वम ।
ॐ आदित्याय नम: ।

पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम ।
ॐ बृहस्पतये नम: ।

अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।

मघा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: ।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त:
पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म । ॐ पितरेभ्ये नम: ।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मां धियमुदवाददन्न: ।
भगप्रजाननाय गोभिरश्वैर्भगप्रणेतृभिर्नुवन्त: स्याम: ।
ॐ भगाय नम: ।

उत्तराफालगुनी नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ दैव्या वद्धर्व्यू च आगत गवं रथेन सूर्य्यतव्चा ।
मध्वायज्ञ गवं समञ्जायतं प्रत्नया यं वेनश्चित्रं देवानाम ।
ॐ अर्यमणे नम: ।

हस्त नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ विभ्राडवृहन्पिवतु सोम्यं मध्वार्य्युदधज्ञ पत्त व विहुतम
वातजूतोयो अभि रक्षतित्मना प्रजा पुपोष: पुरुधाविराजति ।
ॐ सावित्रे नम: ।

चित्रा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम ।
द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: ।
त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: ।

स्वाती नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो
युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर:
स्वपत्थ्या निचक्रु: । ॐ वायव नम: ।

विशाखा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ इन्द्रान्गी आगत गवं सुतं गार्भिर्नमो वरेण्यम ।
अस्य पात घियोषिता । ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: ।

अनुराधा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृत
गवं सपर्यत दूरंदृशे देव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्योयश
गवं सत । ॐ मित्राय नम: ।

ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ इन्द्राय नम: ।

मूल नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त ।
ॐ निॠतये नम: ।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ अपाघ मम कील्वषम पकृल्यामपोरप: अपामार्गत्वमस्मद
यदु: स्वपन्य-सुव: । ॐ अदुभ्यो नम: ।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वSउतो विश्वे भवत्यग्नय: समिद्धा:
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं बाजो अस्मै ।

श्रवण नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो
धुर्वोसि वैष्णवमसि विष्नवेत्वा । ॐ विष्णवे नम: ।

धनिष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो: पवित्रमसि सहत्रधारम ।
देवस्त्वासविता पुनातुवसो: पवित्रेणशतधारेण सुप्वाकामधुक्ष: ।
ॐ वसुभ्यो नम: ।

शतभिषा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य
ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि ।
ॐ वरुणाय नम: ।

पूर्वभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ उतनाहिर्वुधन्य: श्रृणोत्वज एकपापृथिवी समुद्र: विश्वेदेवा
ॠता वृधो हुवाना स्तुतामंत्रा कविशस्ता अवन्तु ।
ॐ अजैकपदे नम:।

उत्तरभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ शिवोनामासिस्वधितिस्तो पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गवं सो
निर्वत्तयाम्यायुषेSत्राद्याय प्रजननायर रायपोषाय ( सुप्रजास्वाय ) ।
ॐ अहिर्बुधाय नम: ।

रेवती नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन ।
स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम: ।