रविवार स्पेशल
#आध्यात्मिक_कहानी
****पोस्ट विशाल जोषी****
सुख और दुःख जीवन के दो अनिवार्य अंग हैं जैसे दिन और रात...
जिस प्रकार तेजस्वी सूर्य भी संध्या के समय अस्ताचल की ओर प्रस्थान करता है और धीरे-धीरे रात्रि की कालिमा संपूर्ण पृथ्वी को ढक लेती है, तब प्रकाश के अस्तित्व पर भी संदेह होने लगता है।
परंतु उस घनघोर अंधकार को चीरता हुआ सूर्य फिर से प्रकट होता है और संपूर्ण ओज के साथ और चारों ओर प्रकाश का साम्राज्य फिर से स्थापित हो जाता है।
इसी प्रकार जीवन में सुख और दुःख की उपस्थिति है।
जब सुख का समय होता है तो हम आवेशित हो जाते है, ऐसा प्रतीत होता है मानों हर वस्तु हमारी मुट्ठी में है।
जैसा-जैसा हम चाहेंगे वैसा-वैसा ही होगा, हम स्वयं को अपने और अपने से जुड़े व्यक्तियों के भाग्य का नियंता मानने लगते है और यहीं से दु:ख का आरंभ होने लगता है।
दु:ख जब आता है तो हमारे सारे आवेश, सारे अहंकार को धूल धूसरित कर देता है और हम स्वयं को दीन-हीन, भाग्यहीन, निर्बल अनुभव करने लगते है।
हमें हमेशा ये स्मरण रखना चाहिए कि ये सुख-दुःख निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
प्रत्येक सुख के बाद दु:ख और प्रत्येक दुख के बाद फिर सुख अवश्यम्भावी है।
इनसे निर्लिप्त रहा जा सकता है और निर्लिप्त रहने का एक ही उपाय है और वो है धैर्य।
धैर्य वो कवच है जिसे धारण करने वाला कभी विचलित नहीं होता।
सम्मान हो या अपमान हो, हर्ष हो या शोक हो, मिलन हो या वियोग हो, लाभ हो या हानि हो, सफलता हो या असफलता हो, कुछ भी स्थायी नहीं है, सब पल भर का स्वप्न मात्र है, अभी नेत्र खुले अभी दृश्य बदला।
सुख में उत्तेजित होना, आवेशित होना, उन्मादित होना या दुख में निराश होना, क्रोधित होना धैर्यवान मनुष्य के लक्षण नहीं है।
परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल मनुष्य को धैर्य नहीं खोना चाहिए।
धैर्य धारण करने वाला मनुष्य हर परिस्थिति का सामना कर सकता है और उसे अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है।
इसका सबसे सुगम उपाय है मौन और मुस्कान।
#आध्यात्मिक
तुरंत प्रतिक्रिया से जितना संभव हो सके बचने का प्रयास करना चाहिए।
शब्द अमोघ अस्त्र है, शब्द रूपी बाण अगर एक बार मुख से निकल गए तो फिर उन्हें रोकने का कोई उपाय नहीं।
ये अपना लक्ष्य-भेदन करने से पूर्व रूकेंगे नहीं और शब्दों द्वारा की गई हानि की भरपाई अत्यंत कठिन है।
दूसरी ओर मुस्कुराहट दुःख को आधा और सुख को दोगुना करने की क्षमता रखती है।
इसलिए दुख हो या सुख हर क्षण का मुस्कुरा कर स्वागत कीजिए और बहुत सोच-समझकर बोलिए।