Friday 31 July 2015

मृत्यु के अंतिम घंटों में क्या होता है? जीवन के अंतिम पल

मरते समय सारी ज़िन्दगी में जो किया हो,
उसका सार (हिसाब) आता है। वह सार पौना
घंटे तक पढ़ता रहे, फिर देह बंध जाता है। फलतः
दो पैरों में से चार पैर हो जाते हैं। यहाँ रोटी
खाते खाते, वहाँ डंठल खाने! इस कलियुग का
माहात्म्य ऐसा है। इसलिए यह मनुष्यत्व फिर
मिलना मुश्किल है, ऐसा यह कलियुग का काल...
प्रश्नकर्ता : अंतिम समय किसे पता है कि कान
बंद हो जाएँ?
दादाश्री : अंतिम समय में तो आज जो आपके
बहीखाते में जमा है न, वह आता है। मृत्यु समय का
घंटा, जो गुणस्थान आता है न, वह सार है और वह
लेखा-जोखा सिर्फ सारी ज़िन्दगी का नहीं,
परन्तु पहले जो जन्म लिया और बाद का, उस बीच
के भाग का लेखा-जोखा है। वह मृत्यु की घड़ी में
हमारे लोग, कितने ही कान में बुलवाते हैं, 'बोलो
राम, बोलो राम,' अरे मुए, राम क्यों बुलवाता
है? राम तो गए कभी के!
पर लोगों ने सिखलाया ऐसा, कि ऐसा कुछ
करना। लेकिन वह तो अंदर पुण्य जागा हो न, तब
एडजस्ट होता है। और वह तो लड़की को ब्याहने
की चिंता में ही पड़ा होता है। ये तीन
लड़कियाँ ब्याह दीं और यह चौथी रह गई। ये
तीन ब्याह दीं और छोटी अकेली रह गई। ऱकम
करी कि वह आगे आकर खड़ी रहेगी। और वह बचपन
में अच्छा किया हुआ नहीं आएगा, बुढ़ापे में
अच्छा किया हुआ आएगा।

आध्यात्मिक विज्ञान मृत्यु का रहस्य


मृत्यु क्या है? मृत्यु के समय क्या होता है? मृत्यु के
पश्चात क्या होता है? मृत्यु के अनुभव के बारे में
कोई किस प्रकार बता सकता है? मृत व्यक्ति
अपना अनुभव नहीं बता सकता, जिनका जन्म हुआ
है उन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में कुछ याद नहीं,
कोई नहीं जानता कि जन्म से पहले और मृत्यु के
बाद में क्या होता है।

क्या पुनर्जन्म एक सच्चाई है? ड़ारविन के उत्पत्ति
के नियम के अनुसार जीवन एक कोशीय जीव से
शुरू होकर मनुष्य में पहुँचने तक विकसित होता है।
इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि उसके बाद
में क्या होता है। दादाश्री वैज्ञानिक तरीके
से पुनर्जन्म के बारे में समझाते हैं।
आत्मा के अस्तित्व में विश्वास के बिना
पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है? जब आत्मा
का स्वरूप समझ में आ जाएगा तो सभी पहेलियाँ
सुलझ जाएँगी। पहले आत्मज्ञान प्राप्त कर लें और
उसके बाद सभी पहेलियाँ सुलझ जाएँगी।
आत्मा कभी भी मरता नहीं है, लेकिन जब तक आप
आत्मभाव में नहीं आ जाते, आपको मृत्यु का डर
बना रहेगा।
जब मृत्यु के बारे में सभी तथ्य पता चल जाएँगे, तो
मृत्यु का डर गायब हो जाएगा। मृत्यु के रहस्य
जानने के लिए पढ़ें..

सदगुरु किसे कहते हैं ?

प्रश्नकर्ता : अब सदगुरु किसे कहें?
दादाश्री : ऐसा है न, सदगुरु किसे कहें, वह बहुत
बड़ी मुश्किल है। सदगुरु किसे कहा जाता है,
शास्त्रीय भाषा में? कि सत् अर्थात् आत्मा,
वह जिसे प्राप्त हुआ है वैसे गुरु, वे सदगुरु !
अर्थात् सदगुरु, वे तो आत्मज्ञानी ही सदगुरु
कहलाते हैं, आत्मा का अनुभव हो चुका होता है
उन्हें। सभी गुरुओं को आत्मज्ञान नहीं होता।
इसलिए जो निरंतर सत् में ही रहते हैं, अविनाशी
तत्व में ही रहते हैं, वे सदगुरु! इसलिए सदगुरु तो
ज्ञानीपुरुष होते हैं।
प्रश्नकर्ता : श्रीमद् राजचंद्र कह गए हैं कि
प्रत्यक्ष सदगुरु के बिना मोक्ष होता ही नहीं।
दादाश्री : हाँ, उनके बिना मोक्ष होता ही
नहीं है। सदगुरु कैसे होने चाहिए? कषाय रहित
होने चाहिए, जिनमें कषाय ही नहीं हो। हम
मारें, गालियाँ दें तो भी कषाय नहीं करें।
सिर्फ कषाय रहित ही नहीं, परंत बुद्धि खत्म हो
जानी चाहिए। बुद्धि नहीं होनी चाहिए। इन
बुद्धिशालियों के पास हम मोक्ष लेने जाएँ, तो
उनका ही मोक्ष नहीं हुआ है तो आपका कैसे
होगा? यानी धौल मारें तो भी असर नहीं,
गालियाँ दें तो भी असर नहीं, मार मारें तो
भी असर नहीं, जेल में डाल दें तो भी असर नहीं।
द्वंद्व से परे होते हैं। द्वंद्व समझे आप? नफा-
नुकसान, सुख-दुःख, दया-निर्दयता। एक हो
वहाँ दूसरा होता ही है, उसका नाम द्वंद्व!
इसलिए जो गुरु द्वंद्वातीत हों, उन्हें सदगुरु कहा
जाता है।
इस काल में सदगुरु होते नहीं। किसी जगह पर ही
होते हैं। बा़की सदगुरु होते ही नहीं न! इसलिए ये
लोग गुरु को ही उल्टे प्रकार से सदगुरु मान बैठे हैं।
इसलिए यह सब फँसे हुए हैं! नहीं तो सदगुरु मिलने के
बाद चिंता होती होगी?
प्रश्नकर्ता : हरकोई अपने गुरु को ही सदगुरु मान
बैठा है, वह क्या है?
दादाश्री : अपने हिन्दुस्तान में सभी धर्मोंवाले
अपने-अपने गुरु को सदगुरु ही कहते हैं। कोई भी
सिर्फ गुरु नहीं कहता। लेकिन उसका अर्थ
लौकिक भाषा में है। संसार में जो बहुत ऊँचे
चारित्रवाले गुरु होते हैं, उन्हें अपने लोग सदगुरु
कहते हैं। लेकिन वास्तव में वे सदगुरु नहीं कहलाते।
उनमें प्राकृतिक गुण बहुत ऊँचे होते हैं, खाने-पीने में
समता रहती है, व्यवहार में समता होती है,
व्यवहार में चारित्रगुण बहुत ऊँचे होते हैं, लेकिन
उन्हें आत्मा प्राप्त नहीं हुआ होता। वे सदगुरु
नहीं कहलाते।
ऐसा है न, गुरु दो प्रकार के हैं। एक गाईड रूपी गुरु
होते हैं। गाईड अर्थात् उन्हें हमें फॉलो करना
होता है। वे आगे-आगे चलते हैं मोनिटर की तरह।
उन्हें गुरु कहा जाता है। मोनिटर मतलब आप समझे?
जिन्हें हम फॉलो करते रहें। तिराहा आया हो
तो वे डिसाइड करते हैं कि भाई, इस रास्ते नहीं,
उस रास्ते चलो। तब हम उस रास्ते चलते हैं। उन्हें
फॉलो करना होता है, लेकिन वे अपने आगे ही
होते हैं। कहीं पर नहीं होते हैं और दूसरे, सदगुरु!
सदगुरु मतलब हमें इस जगत् के सर्व दुःखों से मुक्ति
दिलवाते हैं। क्योंकि वे खुद मुक्त हो चुके होते हैं।
वे हमें उनके फॉलोअर्स की तरह नहीं रखते, और गुरु
को तो फॉलो करते रहना पड़ता है हमें। उनके
विश्वास पर चलना होता है। वहाँ अपनी
अक्कलमंदी का उपयोग नहीं करें, और गुरु के प्रति
सिन्सियर रहें। जितने सिन्सियर हों, उतनी
शांति रहती है।
गुरु तो हम यह स्कूल में पढ़ने जाते हैं न, तब से ही गुरु
की शुरूआत हो जाती है, तो ठेठ अध्यात्म के
दरवाज़े तक गुरु ले जाते हैं। लेकिन अध्यात्म में
प्रविष्ट नहीं होने देते। क्योंकि गुरु ही अध्यात्म
ढूँढ रहे होते हैं। अध्यात्म अर्थात् क्या? आत्मा के
सम्मुख होना वह। सदगुरु तो हमें आत्मा के सम्मुख
कर देते हैं।
अर्थात् यह है गुरु और सदगुरु में फर्क!

प्रत्यक्ष गुरु का क्या महत्व है ?

प्रश्नकर्ता : जो महानपुरुष हो गए है हज़ारों
साल पहले , उन्हें हम समर्पण करें, तो वह समर्पण
किया कहलाएगा? अथवा उससे अपना विकास
होगा क्या? या प्रत्यक्ष महापुरुष ही
चाहिए?
दादाश्री : परोक्ष से भी विकास होता है और
प्रत्यक्ष मिलें तब तो कल्याण ही हो जाता है।
परोक्ष, विकास का फल देता है और प्रत्यक्ष के
बिना कल्याण नहीं होता।
समपर्ण करने के बाद हमें कुछ भी करना नहीं
होता। अपने यहाँ बालक जन्मे तो बालक को
कुछ भी करना नहीं होता, उसी तरह समर्पण करने
के बाद हमें कुछ भी नहीं करना होता है।
आप जिसे बुद्धि समर्पण करो, उनमें जो शक्ति हो
वह आपको प्राप्त हो जाती है। समर्पण किया
और उनका सब हमें प्राप्त हो जाता है। जैसे एक
टंकी के साथ दूसरी टंकी को ज़रा पाईप से
जोइन्ट करें न, तो एक टंकी में चाहे जितना माल
भरा हुआ हो, लेकिन दूसरी टंकी में उतना ही
लेवल आ जाता है। समर्पण भाव उसके जैसा
कहलाता है।
जिनका मोक्ष हो गया हो, जो खुद मोक्ष का
दान देने निकले हों, वही मोक्ष दे सकते हैं। वैसे हम
मोक्ष का दान देने निकले हैं। हम मोक्ष का दान
दे सकते हैं। वर्ना कोई मोक्ष का दान नहीं दे
सकता।

गुरु की परिभाषा क्या है ?

प्रश्नकर्ता : सच्चे गुरु के लक्षण क्या हैं?
दादाश्री : जो गुरु प्रेम रखें, जो गुरु अपने हित में
हों, वे ही सच्चे गुरु होते हैं। ऐसे सच्चे गुरु कहाँ से
मिलेंगे! गुरु को देखते ही ऐसे अपना पूरा शरीर
सोचे बिना ही (उनके चरणों में) झुक जाता है।
इसलिए लिखा है न,
'गुरु ते कोने कहेवाय,जेने जोवाथी शीश झुकी
जाय।'
देखते ही अपना मस्तक झुक जाए, उसका नाम गुरु।
अतः यदि गुरु हों, तो विराट स्वरूप होना
चाहिए। तो अपनी मुक्ति होगी, नहीं तो
मुक्ति नहीं होगी।
प्रश्नकर्ता : गुरु किसे बनाएँ, वह भी प्रश्न है न?
दादाश्री : जहाँ पर अपने दिल को ठंडक हो उन्हें
गुरु बनाना। दिल को ठंडक नहीं होती, तब तक
गुरु मत बनाना। इसलिए हमने क्या कहा है कि
यदि गुरु बनाओ तो आँखों में समाएँ वैसे को
बनाना।
प्रश्नकर्ता : 'आँखों में समाएँ वैसे', मतलब क्या?
दादाश्री : ये लोग शादी करते हैं तब लड़कियाँ
देखते रहते हैं, तो क्या देखते हैं वे? लड़की आँखों में
समाए वैसी ढूँढते हैं। यदि मोटी हो तो उसके
वज़न से ज़ोर लगता है, आँखों पर ही ज़ोर पड़ता है,
वज़न लगता है। पतली हो तो उसे दुःख होता है,
आँखों में देखते ही समझ जाता है। उसी तरह, 'गुरु
आँखों में समाएँ वैसे' मतलब क्या? कि अपनी
आँखों में हर प्रकार से फिट हो जाएँ, उनकी
वाणी फिट हो जाए, उनका वर्तन फिट हो
जाए, वैसे गुरु बनाना!
प्रश्नकर्ता : हाँ, सही है। वैसे गुरु हों तभी उनका
आश्रय महसूस होगा उसे।
दादाश्री : हाँ, यदि गुरु कभी हमारे दिल में बसें
ऐसे हों, उनकी कही हुई सभी बातें हमें पसंद हों,
तो उनका वह आश्रित हो जाता है। फिर उसे
दुःख नहीं रहता। गुरु, वह तो बहुत बड़ी चीज़ है।
अपने दिल को ठंडक हुई, ऐसा लगना चाहिए। हमें
जगत् भुला दें, उसे गुरु बनाएँ। देखते ही हम जगत् भूल
जाएँ, जगत् विस्मृत हो जाए हमें, तो उन्हें गुरु
बनाएँ। नहीं तो गुरु का महात्म्य ही नहीं
होगा न!

Thursday 30 July 2015

गुरु पुणिँमा की हार्दिक शुभेच्छा जय बालाजी नमस्कार

��गुरूब्रम्हा गुरुविष्णु; गुरूदेवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रम्ह; तस्मैश्री गुरूवे नमः��

Wednesday 29 July 2015

जीवन का उद्देश्य है

������������

एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था।
सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि  स्पीकर अचानक
ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे ��देते हुए बोला , ” आप
सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है। ” सभी ने
ऐसा ही किया।

अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया।
स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर
अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा।

सारे पार्टिसिपेंट्स
तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने
लगे।

पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम
वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था…

��  5 पांच मिनट बाद सभी को बाहर
बुला लिया गया।

स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप
सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम
वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” ”

���� नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर
हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक
पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।

��“कोई बात नहीं , आप लोग एक
बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे
अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर
लिखा हुआ है। “, स्पीकर ने निर्दश दिया।

��एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और कमरे
में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे
को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।

स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,

☝☝” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है।
हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई
मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस
पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद
भी उसे कुछ नहीं मिलता ,

����  हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में
छिपी हुई है।

���� जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे
����तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी।

जीवन का उद्देश्य है ।
����

दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ? → मौत..!!

❓|||||||||  प्रश्नोत्तर  |||||||||

Qus→ जीवन का उद्देश्य क्या है ?
Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
��
Qus→ जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?
Ans→ जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
��
Qus→संसार में दुःख क्यों है ?
Ans→लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!!
��
Qus→ ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?
Ans→ ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!
��
Qus→ क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?
Ans→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में 'ईश्वर' कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!!
��
Qus→ भाग्य क्या है ?
Ans→हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!!
��
Qus→ इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
Ans→ रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है..
इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है..!!
��
Qus→किस चीज को गंवाकर मनुष्य
धनी बनता है ?
Ans→ लोभ..!!
��
Qus→ कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
Ans → अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!!
��
Qus → किस चीज़ के खो जाने
पर दुःख नहीं होता ?
Ans → क्रोध..!!
��
Qus→ धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?
Ans → दया..!!
��
Qus→क्या चीज़ दुसरो को नहीं देनी चाहिए ?
Ans→ तकलीफें, धोखा..!!
��
Qus→ क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ?
Ans→ इज़्ज़त, किसी की हाय..!!
��
Qus→ ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है ?
Ans→मज़बूरी..!!
��
Qus→ दुनियां की अपराजित चीज़ ?
Ans→ सत्य..!!
��
Qus→ दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ?
Ans→ झूठ..!!
��
Qus→ करने लायक सुकून का
कार्य ?
Ans→ परोपकार..!!
��
Qus→ दुनियां की सबसे बुरी लत ?
Ans→ मोह..!!
��
Qus→ दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ?
Ans→ जिंदगी..!!
��
Qus→ दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ?
Ans→ मौत..!!
��
Qus→ ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ?
Ans→ अपनी मूर्खता..!!
��
Qus→ दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ?

Ans→ आत्मा और ज्ञान..!!
��
Qus→ कभी न थमने वाली चीज़ ?
Ans→ समय

GOVINDAM PARMANANDAM

जीवन मंत्र
".     प्रेम  करने से प्रेम मिलता है!
             "नफरत नहीं!

nitya satsang

काश ये बात लोग समझ जाये कि,
रिश्तें एक दूसरे का ख्याल रखने के लिए बनाए जाते
है ,,
एक दूसरे का इस्तेमाल करने के लिए नही .

Monday 27 July 2015

वेद क्या हैं?

वास्तव में वेद किसे माना जाए, इस पर कई तरह के
मत हैं. यहां हम इस भ्रम को दूर करने का प्रयास
करेंगे. वैदिक साहित्य में सम्मिलित होने वाली
पुस्तकें:
१. वेद मंत्र संहिताएँ – ऋग्, यजुः, साम, अथर्व.
२. प्रत्येक मंत्र संहिता के ब्राह्मण.
३. आरण्यक.
४. उपनिषद (असल में वेद, ब्राह्मण और आरण्यक का
ही भाग).
५. उपवेद (प्रत्येक मंत्र संहिता का एक उपवेद).
वास्तव में केवल मंत्र संहिताएँ ही वेद हैं. अन्य
दूसरी पुस्तकें जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, ६
दर्शन, गीता इत्यादि ऋषियों द्वारा लिखी
गई हैं. यह सब मनुष्यों की रचनाएँ हैं, परमात्मा
की नहीं. अत: जहां तक यह सब वेद के अनुकूल
हो, वहीं तक समझना और अपनाना चाहिए.
प्रश्न. कात्यायन ऋषि के अनुसार तो ब्राह्मण
भी ईश्वरीय हैं तब आप ब्राह्मणों को वेदों का
भाग क्यों नहीं मानते?
उत्तर. १. ब्राहमण ग्रंथों को इतिहास, पुराण,
कल्प, गाथा और नाराशंसी भी कहते हैं. इन में
ऋषियों ने वेद मन्त्रों की व्याख्याएँ की हैं.
इसलिए ये ऋषियों की रचनाएँ हैं ईश्वर की नहीं.
२.शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन प्रतिज्ञा
परिशिष्ट को छोड़कर (कई विद्वान कात्यायन
को इस का लेखक नहीं मानते) अन्य कोई भी
ग्रन्थ ब्राह्मणों को वेदों का भाग नहीं कहता.
३. इसी तरह, कृष्ण यजुर्वेद के श्रौत सूत्र भी मन्त्र
और ब्राहमण को एक बताते हैं. किन्तु कृष्ण यजुर्वेद
में ही मन्त्र और ब्राहमण सम्मिलित हैं. अत: यह
विचार केवल उसी ग्रन्थ के लिए संगत हो सकता
है. जैसे ‘ धातु’ शब्द का अर्थ पाणिनि व्याकरण
में – ‘ मूल’ , पदार्थ विज्ञान में ‘धातु’ (metal) और
आयुर्वेद में जो शरीर को धारण करे या बनाये रखे
– रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य और
ओज होता है. ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद और सामवेद
की किसी शाखा में ब्राह्मणों के वेद होने का
प्रमाण नहीं मिलता.
४. वेद ईश्वर का शाश्वत ज्ञान हैं. उन में कोई
इतिहास नहीं है. पर ब्राहमण ग्रंथों में
ऐतिहासिक व्यक्तियों का वर्णन और इतिहास
मिलता है.
५. वैदिक साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थ ऋग्वेद,
यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद की मन्त्र संहिताओं
को ही वेद मानते हैं.
वेद :
ऋग १०.९०.३, यजु ३१.७, अथर्व १९.६.१३, अथर्व
१०.७.२०, यजु ३५.५, अथर्व १.१०.२३, ऋग ४.५८.३,यजु
१७.९ १( निरुक्त के अनुसार १३.६ ), अथर्व
१५.६.९ ,अथर्व १५.६.८, अथर्व ११.७.२४
उपनिषद् :
बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१०, १.२.५, छान्दोग्य
उपनिषद् ७.१.२, मुण्डक १.१.५, नृसिंहपूर्वतपाणि,
छान्दोग्य ७.७.१, तैत्तरीय १.१, तैत्तरीय २.३
ब्राह्मण:
शतपथ ब्राह्मण ११.५.८, गोपथ पूर्व २.१६, गोपथ
१.१.२९
महाभारत:
द्रोणपर्व ५१.२२, शांतिपर्व २३५.१, वनपर्व १८७.१४,
२१५.२२, सभापर्व ११.३१
स्मृति:
मनुस्मृति : १.२३
पुराण :
पद्मा ५.२.५०, हरिवंश, विष्णु पुराण १.२२.८२,
५.१.३६, ब्रह्मवैवर्त १४.६४
अन्य:
महाभाष्य पाश पाशणिक,कथक संहिता
४०.७,अथर्ववेद सायन भाष्य
१९.९.१२,बृहदारण्यवार्तिकसार (२.४) सायन,सर्वानुक्रमणिभूमिका,रामायण
३.२८
इत्यादि.शंकराचार्य ने भी चारों मन्त्र
संहिताओं को ही वेद माना है – “चतुर्विध
मंत्रजातं
” (शंकराचार्य बृहदारण्यक भाष्य २ .४ .१ ० )
६. ब्राह्मण ग्रन्थ स्वयं भी वेद होने की घोषणा
नहीं करते .
७. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वेदों में कुल ८.६४
लाख शब्द हैं.यदि ब्राह्मणों को भी शामिल
किया जाता, तो यह संख्या कहीं अधिक
होती.
८. केवल मन्त्र ही जटा, माला, शिखा, रेखा,
ध्वज, दंड, रथ और घन पाठ की विधियों से
सुरक्षित किए गए हैं. ब्राह्मण ग्रंथों की सुरक्षा
का ऐसा कोई उपाय नहीं है.
९. केवल मन्त्रों के लिए ही स्वर भेद और मात्राओं
का उपयोग किया जाता है. ब्राह्मणों के लिए
नहीं.
१०. प्रत्येक मन्त्र का अपना विशिष्ट ऋषि,
देवता, छंद और स्वर है. ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसा
नहीं है.
११. यजु: प्रतिशाख्य में कहा गया है कि मन्त्रों
से पूर्व ‘ओम’ और ब्राह्मण श्लोकों से पूर्व ‘अथ’
बोला जाना चाहिए. इसी तरह की बात ऐतरेय
ब्राह्मण में भी कही गयी है.
१२. ब्राह्मणों में स्वयं उनके लेखकों
की जानकारी मिलती है. और मन्त्रों की
व्याख्या करते हुए कई स्थानों पर कहा है “नत्र
तिरोहितमिवस्ति” – हमने सरल भागों को
छोड़ कर केवल कठिन भागों की ही व्याख्या
की है.
by parimal thakar

Sunday 26 July 2015

मुम्बई 9757364576

निशुल्क टिफिन सेवा  रोगियो एवम् उनके सहयोगियों के लिए मुम्बई के हर अस्पताल में
12 घंटे पहले सूचना देवे
चंपा लाल जी जैन       जैन सहारा संस्थान मुम्बई
9757364576
कृपया सभी  ग्रुप में भेजे

bhargav joshi

: आज का सुविचार

अपनी ईच्छा से जीयोगे तो जींदगी संघर्ष मय बन जायेगी
और
हरी की ईच्छा से जीयोगे तो जींदगी सत्संग मय बन जायेगी

।। ओम नमो नारायण।।

वहावी रक्तनी नदीओ, रक्षा करी मां भोम नी...
विख्या वेरी ना वावटा, शान जाळवी तिरंगा नी...

कारगिल विजय के १६ साल पूरे होने पर हम अपने जवानों को सलाम करते हैं.
जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना अपनी जान देश पर न्योछावर कर दी।आज कारगिल विजय दिवस पर सभी शहीदों को शत शत नमन..........
यह देश हमेशा -- हमेशा आपकाऔर आपके परिवार का हृदय से आभारी रहेगा.......
3
दुख सहने वाला आगे जाकर सुखी हो सकता है
लेकिन
दुख देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता...।

Saturday 25 July 2015

ब्राह्मण

-- पुराणों में कहा गया है -

विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।

जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी शून्य हो जाते हैं । इसलिए

ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः ।।

श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए । क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर अवस्था में कल्याण ही करता है ।

ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......

वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान के मुख में निवास करते हैं इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है की

विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम
विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
विप्र प्रसादात्अजिता$जितोहम
विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।

ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने धरती को धारण कर रखा है अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही के आशीर्वाद से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है, इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है, अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।