Friday, 31 July 2015

गुरु की परिभाषा क्या है ?

प्रश्नकर्ता : सच्चे गुरु के लक्षण क्या हैं?
दादाश्री : जो गुरु प्रेम रखें, जो गुरु अपने हित में
हों, वे ही सच्चे गुरु होते हैं। ऐसे सच्चे गुरु कहाँ से
मिलेंगे! गुरु को देखते ही ऐसे अपना पूरा शरीर
सोचे बिना ही (उनके चरणों में) झुक जाता है।
इसलिए लिखा है न,
'गुरु ते कोने कहेवाय,जेने जोवाथी शीश झुकी
जाय।'
देखते ही अपना मस्तक झुक जाए, उसका नाम गुरु।
अतः यदि गुरु हों, तो विराट स्वरूप होना
चाहिए। तो अपनी मुक्ति होगी, नहीं तो
मुक्ति नहीं होगी।
प्रश्नकर्ता : गुरु किसे बनाएँ, वह भी प्रश्न है न?
दादाश्री : जहाँ पर अपने दिल को ठंडक हो उन्हें
गुरु बनाना। दिल को ठंडक नहीं होती, तब तक
गुरु मत बनाना। इसलिए हमने क्या कहा है कि
यदि गुरु बनाओ तो आँखों में समाएँ वैसे को
बनाना।
प्रश्नकर्ता : 'आँखों में समाएँ वैसे', मतलब क्या?
दादाश्री : ये लोग शादी करते हैं तब लड़कियाँ
देखते रहते हैं, तो क्या देखते हैं वे? लड़की आँखों में
समाए वैसी ढूँढते हैं। यदि मोटी हो तो उसके
वज़न से ज़ोर लगता है, आँखों पर ही ज़ोर पड़ता है,
वज़न लगता है। पतली हो तो उसे दुःख होता है,
आँखों में देखते ही समझ जाता है। उसी तरह, 'गुरु
आँखों में समाएँ वैसे' मतलब क्या? कि अपनी
आँखों में हर प्रकार से फिट हो जाएँ, उनकी
वाणी फिट हो जाए, उनका वर्तन फिट हो
जाए, वैसे गुरु बनाना!
प्रश्नकर्ता : हाँ, सही है। वैसे गुरु हों तभी उनका
आश्रय महसूस होगा उसे।
दादाश्री : हाँ, यदि गुरु कभी हमारे दिल में बसें
ऐसे हों, उनकी कही हुई सभी बातें हमें पसंद हों,
तो उनका वह आश्रित हो जाता है। फिर उसे
दुःख नहीं रहता। गुरु, वह तो बहुत बड़ी चीज़ है।
अपने दिल को ठंडक हुई, ऐसा लगना चाहिए। हमें
जगत् भुला दें, उसे गुरु बनाएँ। देखते ही हम जगत् भूल
जाएँ, जगत् विस्मृत हो जाए हमें, तो उन्हें गुरु
बनाएँ। नहीं तो गुरु का महात्म्य ही नहीं
होगा न!

2 comments:

  1. Jeni vani ane vartan ekaj hoi je apana ma raheli khami ke upan dur kari ne aadhyatmik unanti taraf lai jay ane moksha no marag batave ta sadguru

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  2. Aapne jeva chiye teva apdo svikar kari ne jem kundan tapi sonu bane tem je guru apne karm rupi gyan karya dwara apne sadpurus baneve te sadguru

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