यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी
मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे
मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा
अपनी माता को विनष्ट न करें।''- (
ऋग्वेद-3-18-1)
aadhyastha
सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के
लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व
हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है।
ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही
सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला
धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो
अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका
कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या
शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न
अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही
सनातन धर्म का सत्य है।
वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म
कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है
जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान
से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का
कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता,
ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास
और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष
का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और
ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म
का सत्य है।
सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया,
क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं
जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के
उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को
प्रतिपादित कर दिया गया था।
।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा
ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।-
वृहदारण्य उपनिष
द
भावार्थ :
अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले
चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से
अमृत की ओर ले चलो।
जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं
मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल
में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा
भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती
है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु
आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर
आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों
में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना
पड़ता है।
।।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- ईश
उपनिष
द
भावार्थ :
सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्।
सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही
सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं
ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत
ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण
जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से
पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की
पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में
भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है।
जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन,
निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे
सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं। वेदों का ब्रह्म
और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है।
जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य
की श्रेणी में आते हैं। सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म)
अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।
जड़ पाँच तत्व से दृश्यमान है- आकाश, वायु, जल,
अग्नि और पृथ्वी। यह सभी शाश्वत सत्य की
श्रेणी में आते हैं। यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु
समाप्त नहीं होते। प्राण की भी अपनी
अवस्थाएँ हैं: प्राण, अपान, समान और यम। उसी
तरह आत्मा की अवस्थाएँ हैं: जाग्रत, स्वप्न,
सुसुप्ति और तुर्या। ज्ञानी लोग ब्रह्म को
निर्गुण और सगुण कहते हैं। उक्त सारे भेद तब तक
विद्यमान रहते हैं जब तक कि आत्मा मोक्ष
प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है।
ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश।
आत्मा का मोक्ष परायण हो जाना ही ब्रह्म
में लीन हो जाना है इसीलिए कहते हैं कि ब्रह्म
सत्य है जगत मिथ्या यही सनातन सत्य है। और
इस शाश्वत सत्य को जानने या मानने वाला
ही सनातनी कहलाता है।
हिंदुत्व :
aadhyastha
हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। हिंदुत्व या हिंदू धर्म
को प्राचीनकाल में सनातन धर्म कहा जाता
था। एक हजार वर्ष पूर्व हिंदू शब्द का प्रचलन
नहीं था। ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख
मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ नदी या
जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का
नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और
पाक से बहती है। भाषाविदों का मानना है
कि हिंद-आर्य भाषाओं की 'स' ध्वनि ईरानी
भाषाओं की 'ह' ध्वनि में बदल जाती है। आज
भी भारत के कई इलाकों में 'स' को 'ह'
उच्चारित किया जाता है।
इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा (पारसियों
की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित
हो गया। इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी
के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया।
किंतु पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को
आज भी सिंधू या सिंधी कहा जाता है।
ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की
धर्म पुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिन्दू' और 'आर्य' शब्द
का उल्लेख मिलता है। दूसरी ओर अन्य
इतिहासकारों का मानना है कि चीनी
यात्री हुएनसांग के समय में हिंदू शब्द की
उत्पत्ति इंदु से हुई थी। इंदु शब्द चंद्रमा का
पर्यायवाची है। भारतीय ज्योतिषीय गणना
का आधार चंद्रमास ही है। अत: चीन के लोग
भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिंदू' कहने लगे।
आर्यत्व :
आर्य समाज के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं, जबकि
आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर
इसका अर्थ सिर्फ श्रेष्ठ ही माना जाता है।
अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही
आर्य है। बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य का अर्थ
चार श्रेष्ठ सत्य ही होता है। बुद्ध कहते हैं कि
उक्त श्रेष्ठ व शाश्वत सत्य को जानकर
आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना ही 'एस
धम्मो सनंतनो' अर्थात यही है सनातन धर्म।
इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का
धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को
आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका
तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।
सनातन मार्ग :
विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का
मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के
अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो
जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में
अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में
उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का
वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे
सहमत होता नजर आ रहा है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की
गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के
रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त
किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और
ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की
धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को
समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की
कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के
मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
aadhyastha
मोक्ष का मार्ग :
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में मोक्ष अंतिम लक्ष्य
है। यम, नियम, अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष
मार्ग पुष्ट होता है। जन्म और मृत्यु मिथ्या है।
जगत भ्रमपूर्ण है। ब्रह्म और मोक्ष ही सत्य है।
मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है। इसके
अलावा स्वयं के अस्तित्व को कायम करने का
कोई उपाय नहीं। ब्रह्म के प्रति ही समर्पित
रहने वाले को ब्राह्मण और ब्रह्म को जानने
वाले को ब्रह्मर्षि और ब्रह्म को जानकर
ब्रह्ममय हो जाने वाले को ही ब्रह्मलीन कहते
हैं।
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