Thursday, 23 July 2015

संत श्री जलाराम बापा

संत श्री जलाराम बापा ( गुजराती :
જલારામ) एक हिन्दु संत थे। वे राम-भक्त थे।
उनका जन्म १७९९ मे गुजरात के राजकोट जिले
के वीरपुर गाँव में हुआ था।
जीवन
जलाराम बापा का जन्म सन् 1799 में गुजरात
के राजकोट जिले के वीरपुर गाँव में हुआ था।
उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और माँ
का नाम राजबाई था। बापा की माँ एक
धार्मिक महिला थी, जो साधु-सन्तों की
बहुत सेवा करती थी। उनकी सेवा से प्रसन्न
होकर संत रघुवीर दास जी ने आशीर्वाद
दिया कि उनका दुसरा प़ुत्र जलाराम ईश्वर
तथा साधु-भक्ति और सेवा की मिसाल
बनेगा।
16 साल की उम्र में श्री जलाराम का
विवाह वीरबाई से हुआ। परन्तु वे वैवाहिक
बन्धन से दूर होकर सेवा कार्यो में लगना
चाहते थे। जब श्री जलाराम ने
तीर्थयात्राओं पर निकलने का विश्चय
किया तो पत्नी वीरबाई ने भी बापा के
कार्यो में अनुसरण करने में विश्चय दिखाया।
18 साल की उम्र में जलाराम बापा ने फतेहपूर
के संत श्री भोजलराम को अपना गुरू स्वीकार
किया। गुरू ने गुरूमाला और श्री राम नाम
का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के
लिये कहा, तब जलाराम बापा ने 'सदाव्रत'
नाम की भोजनशाला बनायी जहाँ 24 घंटे
साधु-सन्त तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन
कराया जाता था। इस जगह से कोई भी
बिना भोजन किये नही जा पाता था। वे
और वीरबाई माँ दिन-रात मेहनत करते थे।
बीस वर्ष के होते तक सरलता व भगवतप्रेम की
ख्याति चारों तरफ फैल गयी। लोगों ने तरह-
तरह से उनके धीरज या धैर्य, प्रेम प्रभु के प्रति
अनन्य भक्ति की परीक्षा ली। जिन पर वे खरे
उतरे। इससे लोगों के मन में संत जलाराम बापा
के प्रति अगाध सम्मान उत्पन्न हो गया। उनके
जीवन में उनके आशीर्वाद से कई चमत्कार
लोगों ने देखें। जिनमे से प्रमुख बच्चों की
बीमारी ठीक होना व निर्धन का सक्षमता
प्राप्त कर लोगों की सेवा करना देखा
गया। हिन्दु-मुसलमान सभी बापा से भोजन
व आशीर्वाद पाते। एक बार तीन अरबी
जवान वीरपुर में बापा के अनुरोध पर भोजन
किये, भोजन के बाद जवानों को शर्मींदगी
लगी, क्योंकि उन्होंने अपने बैग में मरे हुए पक्षी
रखे थे। बापा के कहने पर जब उन्होंने बैग
खोला, तो वे पक्षी फड़फड़ाकर उड़ गये, इतना
ही नही बापा ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी
मनोकामना पूरी की। सेवा कार्यो के बारे
में बापा कहते कि यह प्रभु की इच्छा है। यह
प्रभु का कार्य है। प्रभु ने मुझे यह कार्य सौंपा
है इसीलिये प्रभु देखते हैं कि हर व्यवस्था ठीक
से हो सन् 1934 में भयंकर अकाल के समय
वीरबाई माँ एवं बापा ने 24 घंटे लोगों को
खिला-पिलाकर लोगों की सेवा की। सन्
1935 में माँ ने एवं सन् 1937 में बापा ने प्रार्थना
करते हुए अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।
आज भी जलाराम बापा की श्रद्धापूर्वक
प्रार्थना करने पर लोगों की समस्त इच्छायें
पूर्ण हो जाती है। उनके अनुभव 'पर्चा' नाम से
जलाराम ज्योति नाम की पत्रिका में
छापी जाती है। श्रद्धालुजन गुरूवार को
उपवास कर अथवा अन्नदान कर बापा को
पूजते हैं।

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