मरते समय सारी ज़िन्दगी में जो किया हो,
उसका सार (हिसाब) आता है। वह सार पौना
घंटे तक पढ़ता रहे, फिर देह बंध जाता है। फलतः
दो पैरों में से चार पैर हो जाते हैं। यहाँ रोटी
खाते खाते, वहाँ डंठल खाने! इस कलियुग का
माहात्म्य ऐसा है। इसलिए यह मनुष्यत्व फिर
मिलना मुश्किल है, ऐसा यह कलियुग का काल...
प्रश्नकर्ता : अंतिम समय किसे पता है कि कान
बंद हो जाएँ?
दादाश्री : अंतिम समय में तो आज जो आपके
बहीखाते में जमा है न, वह आता है। मृत्यु समय का
घंटा, जो गुणस्थान आता है न, वह सार है और वह
लेखा-जोखा सिर्फ सारी ज़िन्दगी का नहीं,
परन्तु पहले जो जन्म लिया और बाद का, उस बीच
के भाग का लेखा-जोखा है। वह मृत्यु की घड़ी में
हमारे लोग, कितने ही कान में बुलवाते हैं, 'बोलो
राम, बोलो राम,' अरे मुए, राम क्यों बुलवाता
है? राम तो गए कभी के!
पर लोगों ने सिखलाया ऐसा, कि ऐसा कुछ
करना। लेकिन वह तो अंदर पुण्य जागा हो न, तब
एडजस्ट होता है। और वह तो लड़की को ब्याहने
की चिंता में ही पड़ा होता है। ये तीन
लड़कियाँ ब्याह दीं और यह चौथी रह गई। ये
तीन ब्याह दीं और छोटी अकेली रह गई। ऱकम
करी कि वह आगे आकर खड़ी रहेगी। और वह बचपन
में अच्छा किया हुआ नहीं आएगा, बुढ़ापे में
अच्छा किया हुआ आएगा।
Friday, 31 July 2015
मृत्यु के अंतिम घंटों में क्या होता है? जीवन के अंतिम पल
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Well done
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