Monday, 27 July 2015

वेद क्या हैं?

वास्तव में वेद किसे माना जाए, इस पर कई तरह के
मत हैं. यहां हम इस भ्रम को दूर करने का प्रयास
करेंगे. वैदिक साहित्य में सम्मिलित होने वाली
पुस्तकें:
१. वेद मंत्र संहिताएँ – ऋग्, यजुः, साम, अथर्व.
२. प्रत्येक मंत्र संहिता के ब्राह्मण.
३. आरण्यक.
४. उपनिषद (असल में वेद, ब्राह्मण और आरण्यक का
ही भाग).
५. उपवेद (प्रत्येक मंत्र संहिता का एक उपवेद).
वास्तव में केवल मंत्र संहिताएँ ही वेद हैं. अन्य
दूसरी पुस्तकें जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, ६
दर्शन, गीता इत्यादि ऋषियों द्वारा लिखी
गई हैं. यह सब मनुष्यों की रचनाएँ हैं, परमात्मा
की नहीं. अत: जहां तक यह सब वेद के अनुकूल
हो, वहीं तक समझना और अपनाना चाहिए.
प्रश्न. कात्यायन ऋषि के अनुसार तो ब्राह्मण
भी ईश्वरीय हैं तब आप ब्राह्मणों को वेदों का
भाग क्यों नहीं मानते?
उत्तर. १. ब्राहमण ग्रंथों को इतिहास, पुराण,
कल्प, गाथा और नाराशंसी भी कहते हैं. इन में
ऋषियों ने वेद मन्त्रों की व्याख्याएँ की हैं.
इसलिए ये ऋषियों की रचनाएँ हैं ईश्वर की नहीं.
२.शुक्ल यजुर्वेद के कात्यायन प्रतिज्ञा
परिशिष्ट को छोड़कर (कई विद्वान कात्यायन
को इस का लेखक नहीं मानते) अन्य कोई भी
ग्रन्थ ब्राह्मणों को वेदों का भाग नहीं कहता.
३. इसी तरह, कृष्ण यजुर्वेद के श्रौत सूत्र भी मन्त्र
और ब्राहमण को एक बताते हैं. किन्तु कृष्ण यजुर्वेद
में ही मन्त्र और ब्राहमण सम्मिलित हैं. अत: यह
विचार केवल उसी ग्रन्थ के लिए संगत हो सकता
है. जैसे ‘ धातु’ शब्द का अर्थ पाणिनि व्याकरण
में – ‘ मूल’ , पदार्थ विज्ञान में ‘धातु’ (metal) और
आयुर्वेद में जो शरीर को धारण करे या बनाये रखे
– रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य और
ओज होता है. ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद और सामवेद
की किसी शाखा में ब्राह्मणों के वेद होने का
प्रमाण नहीं मिलता.
४. वेद ईश्वर का शाश्वत ज्ञान हैं. उन में कोई
इतिहास नहीं है. पर ब्राहमण ग्रंथों में
ऐतिहासिक व्यक्तियों का वर्णन और इतिहास
मिलता है.
५. वैदिक साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थ ऋग्वेद,
यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद की मन्त्र संहिताओं
को ही वेद मानते हैं.
वेद :
ऋग १०.९०.३, यजु ३१.७, अथर्व १९.६.१३, अथर्व
१०.७.२०, यजु ३५.५, अथर्व १.१०.२३, ऋग ४.५८.३,यजु
१७.९ १( निरुक्त के अनुसार १३.६ ), अथर्व
१५.६.९ ,अथर्व १५.६.८, अथर्व ११.७.२४
उपनिषद् :
बृहदारण्यक उपनिषद २.४.१०, १.२.५, छान्दोग्य
उपनिषद् ७.१.२, मुण्डक १.१.५, नृसिंहपूर्वतपाणि,
छान्दोग्य ७.७.१, तैत्तरीय १.१, तैत्तरीय २.३
ब्राह्मण:
शतपथ ब्राह्मण ११.५.८, गोपथ पूर्व २.१६, गोपथ
१.१.२९
महाभारत:
द्रोणपर्व ५१.२२, शांतिपर्व २३५.१, वनपर्व १८७.१४,
२१५.२२, सभापर्व ११.३१
स्मृति:
मनुस्मृति : १.२३
पुराण :
पद्मा ५.२.५०, हरिवंश, विष्णु पुराण १.२२.८२,
५.१.३६, ब्रह्मवैवर्त १४.६४
अन्य:
महाभाष्य पाश पाशणिक,कथक संहिता
४०.७,अथर्ववेद सायन भाष्य
१९.९.१२,बृहदारण्यवार्तिकसार (२.४) सायन,सर्वानुक्रमणिभूमिका,रामायण
३.२८
इत्यादि.शंकराचार्य ने भी चारों मन्त्र
संहिताओं को ही वेद माना है – “चतुर्विध
मंत्रजातं
” (शंकराचार्य बृहदारण्यक भाष्य २ .४ .१ ० )
६. ब्राह्मण ग्रन्थ स्वयं भी वेद होने की घोषणा
नहीं करते .
७. शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वेदों में कुल ८.६४
लाख शब्द हैं.यदि ब्राह्मणों को भी शामिल
किया जाता, तो यह संख्या कहीं अधिक
होती.
८. केवल मन्त्र ही जटा, माला, शिखा, रेखा,
ध्वज, दंड, रथ और घन पाठ की विधियों से
सुरक्षित किए गए हैं. ब्राह्मण ग्रंथों की सुरक्षा
का ऐसा कोई उपाय नहीं है.
९. केवल मन्त्रों के लिए ही स्वर भेद और मात्राओं
का उपयोग किया जाता है. ब्राह्मणों के लिए
नहीं.
१०. प्रत्येक मन्त्र का अपना विशिष्ट ऋषि,
देवता, छंद और स्वर है. ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसा
नहीं है.
११. यजु: प्रतिशाख्य में कहा गया है कि मन्त्रों
से पूर्व ‘ओम’ और ब्राह्मण श्लोकों से पूर्व ‘अथ’
बोला जाना चाहिए. इसी तरह की बात ऐतरेय
ब्राह्मण में भी कही गयी है.
१२. ब्राह्मणों में स्वयं उनके लेखकों
की जानकारी मिलती है. और मन्त्रों की
व्याख्या करते हुए कई स्थानों पर कहा है “नत्र
तिरोहितमिवस्ति” – हमने सरल भागों को
छोड़ कर केवल कठिन भागों की ही व्याख्या
की है.
by parimal thakar

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