Thursday, 17 August 2017

मेरे गुरुदेव उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री: स्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाराज का परिचय एवम् मेरे जीवन का श्रेष्ठ समय विशाल जोषी

सरस्वतीशंकराचार्य स्वामीस्वरूपानंद सरस्वतीमहाराज (जन्म: २ सितम्बर १९२४) एकहिन्दूअध्यात्मिक गुरु,स्वतन्त्रता सेनानीहैं।

[1]जीवन परिचयस्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितम्बर १९२४ को मध्य प्रदेश राज्य केसिवनीजिले मेंजबलपुरके पास दिघोरी गांव मेंब्राह्मणपरिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वहकाशीपहुंचे और यहांउन्होंने ब्रह्मलीन श्रीस्वामी करपात्री महाराजवेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जबभारतकोअंग्रेजोंसे मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब १९४२ में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और १९ साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंनेवाराणसीकी जेल में नौ औरमध्यप्रदेशकी जेलमें छह महीने की सजा भी काटी। वेकरपात्री महाराजकी राजनीतिक डालराम राज्य परिषदके अध्यक्ष भी थे। १९५० में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और १९८१ में शंकराचार्य की उपाधि मिली। १९५० में ज्योतिष्पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।
आज वः उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री हे।
 

१९ ०७ २०१७ में द्वारका सारदा मठ में भगवान्
श्री द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री: स्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाराज के पास गुरुमंत्र लिया और दीक्षा ली यह मेरे जीवन का सबसे श्रेष्ठ समय था

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