Monday, 4 April 2016

#जाने_अचूक_टोटके एवम् चैत्र नवरात्री माहात्म्य -कमलेश रावल कर्मकांड विद मंडल नखत्राणा


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#चैत्र_नवरात्रा_2016

इस साल चैत्र नवरात्र 8 अप्रैल से शुरू होंगे और 16 अप्रैल को खत्म होंगे।
चैत्र नवरात्र की मुख्य तिथियां निम्न हैं:

8 अप्रैल 2016 : इस दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 12:04से12:54 तक का है।
नवरात्र के पहले दिन  माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
वैसे चोघ डीये के हिसाब से 10:40 से 10:55 व 12:29 से 2:03 भी र्मूहत है।

9 अप्रैल 2016: नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।

10 अप्रैल 2016 : नवरात्र के तीसरे दिन देवी दुर्गा के चन्द्रघंटा रूप की आराधना की जाती है।
इस साल तृतीया और चतुर्थी दिवस एक होने के कारण माता के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा जी की आराधना की जाएगी।

11 अप्रैल 2016 : नवरात्र के पांचवें दिन भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।

12 अप्रैल 2016 : नारदपुराण के अनुसार शुक्ल पक्ष यानि चैत्र नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए।

13 अप्रैल 2016 : नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रिकी पूजा का विधान है।

14 अप्रैल 2016 : नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं।

15 अप्रैल 2016 : नौवें दिन भगवती के देवी सिद्धदात्रीस्वरूप का पूजन किया जाता है। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।

16 अप्रैल 2016 : नवरात्र की दशमी को नवरात्रि का समापन हो जाता है।

नवरात्री हिन्दुओं का एक प्रसिद्द पर्व है। नवरात्री का शाब्दिक अर्थ नव+रात्री अर्थात नौं रात्रियां है। आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रुपों की पूजा-आराधना की जाती है। यह पर्व उतर भारत में विशेष रूप से उत्साह और श्राद्ध के साथ मनाया जाता है।

नवरात्रि के नौ दिनों में जप करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती है। और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। एक वर्ष में चार नवरात्रों का वर्णन मिलता है। दो गुप्त तथा दो प्रत्यक्ष।

प्रत्यक्ष नवरात्रों में एक को शारदीय व दूसरे को वासंतिक नवरात्र कहा जाता है। देवी शक्ति और उसके विभिन्न रुपों की पूजा के लिए भारत विश्वभर में प्रसिद्द है। नवरात्रि गुजरात और पश्चिम बंगाल में विशेष पर्व के रूप में मनाई जाती है। नवरात्रे पर उपवास कर रात्रि में माता की आराधना करना कल्याणकारी माना गया है।

प्रथम नवरात्रा - माता शैलपुत्री
प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री के पूजा से उपवास शुरू होकर नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा के साथ समाप्त होते है। प्रथम दिन व्रत संकल्प, कलश स्थापना का दिन होता है। भक्त जन प्रथम दिन देवी सती के रूप शैलपुत्री का विधि-विधान से पूजन करते है। देवी की पूजा में लाल रंग की वस्तुओं का विशेष महत्व है। व्रत के दिन फल, दूध, साबूदाना व्यंजन, आलू व्यंजन और सेंधा नमक का प्रयोग सेवन के लिए किया जाता है।

प्रथम नवरात्रे के दिन भक्त उपवास करने के बाद, दुर्गा जी की आरती करके, तांबे का शैलपुत्री माता का चित्रयुक्त बीसा यंत्र भक्तों में बांटे पर विशेष पुण्य फल प्राप्त कर सकते है.

द्वितीय नवरात्रा - माता ब्रह्माचारिणी
दूसरे नवरात्रे के दिन माता ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप उनके भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इस दिन मंदिरों में ब्रह्मचारिणी देवी के दर्शनों के लिए भक्तों में विशेष उत्साह देखा जाता है।

तृतीय नवरात्रा - माता चंद्रघंटा
नव दुर्गा पूजन के तीसरे दिन माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा के शरणागत होकर उपासना, आराधना में तत्पर हों, तो समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त हो कर, सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते है।

चौथा नवरात्रा - माता कूष्मांडा
माँ दुर्गा पूजन के चोथे दिन माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की उपासना की जाती है। कूष्मांडा देवी का ध्यान करने से अपनी लौकिक-पारलौकिक उन्नति चाहने वालों पर इनकी विशेष कृपा होती है।

पांचवा नवरात्रा - स्कन्द माता
पंचम नव रात्री को स्कन्द माता की पूजा की जाती है। नव दुर्गा पूजन के पांचवे दिन माँ दुर्गा के पांचवे स्वरूप-स्कंदमाता की उपासना करनी चाहिए। स्कंदमाता का ध्यान करने से साधक, इस भवसागर के दु:खों से मुक्त होकर, मोक्ष को प्राप्त करता है।

षष्ट नवरात्रा - कात्यायनी माता
छठे नव रात्रि को कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। कात्यायनी माता के द्वारा बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है।

सप्तम नवरात्रा - कालरात्रि माता
सप्तम नवरात्रि को कालरात्रि माता की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि का ध्यान करने से साधक को इनकी उपासना से होने वाले फलों की गणना नहीं की जा सकती। माता काल-रात्रि का पूजन करने से साधक को मृत्यु का भय नहीं रहता है।

अष्टम नव रात्रि – महागौरी माता
माता सती का आठवां रूप महागौरी है। अष्टम नवरात्रि को महागौरी माता की पूजा की जाती है। महागौरी माता का ध्यान करने वाले साधक के लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाते है।

नवम नव रात्रि - सिद्धिदात्री माता
नवम नव रात्रि को सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है। माता सिद्धिदात्री की उपासना से इस संसार की वास्तविकता का बोध होता है। वास्तविकता परम शांतिदायक अमृत पद की और ले जाने वाली होती है।

नवरात्र शक्ति की शक्तियों को जगाने के दिन होंगे। इन दिनों में देवी की पूजा करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा माता के नौ रूप है। जिनके नाम इस प्रकार है।

शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्ययानी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन शक्ति के एक रूप की पूजा की जाती है। प्रथम दिन शैलपुत्री तथा नवम दिन सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। देवी शक्ति अपने भक्तों को आशीर्वाद दे, उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ती करती है।

नवरात्रि पूजन विधि

नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नान करके घट स्थापना के बाद संकल्प लेकर दुर्गा की मूर्ति या चित्र की षोडशोपचार या पंचोपचार से गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि निवेदित कर पूजा करे। मुख पूर्व या उतर दिशा की और रखें।

शुद्ध पवित्र आसान ग्रहण कर ‘ऊं दूं दुर्गाये नम:’ मंत्र का रुद्राक्ष या चंदन की माला से पांच या कम से कम एक माला जप कर अपना मनोरथ निवेदित करें। पूरी नवरात्रि प्रतिदिन जप करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है।

नवरात्रि की पूर्व संध्या में साधक को मन से यह संकल्प लेना चाहिए, की मुझे शक्ति की उपासना करनी है। उसे चाहिए की वह रात्रि में भूमि पर शयन करें। प्रात:काल उठकर भगवती का स्मरण कर ही नित्य क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए। नीतिगत कार्यों से जुडकर अनितिगत कार्यों की उपेक्षा करनी चाहिए। आहार सात्विक लेना और आचरण पवित्र रखना चाहिए।

पूजन करते समय मन एकाग्रचित होना चाहिए। यदि संभव हो तो नित्य श्रीमद्भागवत, गीता, देवी भागवत आदि ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। इससे मां दुर्गा की पूजा में मन अच्छी तरह लगेगा। जिनके परिवार में शारीरिक, मानसिक या आर्थिक किसी भी प्रकार की समस्या हो, वे मां दुर्गा से रक्षा की कामना करें। इससे उन्हें चिंता से मुक्ति मिलेगी।

नवरात्रि पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें...

माता की पूजा में दूर्वा, तुलसी, आंवला, आक और मदार के फूल अर्पित नहीं किये जाते है। लाल रंग के फूलों व् रंग का अत्यधिक प्रयोग करना शुभ रहता है। लाल फूल नवरात्र के हर दिन मां दुर्गा को अर्पित करें। शास्त्रों के अनुसार घर में मां दुर्गा की दो या तीन मूर्तियां रखना अशुभ माना जाता है। मां दुर्गा की पूजा सदैव सूखे वस्त्र पहनाकर ही करनी चाहिए। पूजन आदि के समय बाल भी खुले नहीं होने चाहिए। आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है।

जय माता दी

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