अगर आप भौतिकता से थोड़ा आगे जाएं, तो सब कुछ शून्य हो जाता है। शून्य का अर्थ है पूर्ण खालीपन, एक ऐसी स्थिति जहां भौतिक कुछ भी नहीं है। जहां भौतिक कुछ हैही नहीं, वहां आपकी ज्ञानेंद्रियां भी बेकाम की हो जाती हैं। अगर आप शून्य से परे जाएं, तो आपको जो मिलेगा, उसे हम शिव के रूप में जानते हैं। शिव का अर्थ है, जो नहीं है। जो नहीं है, उस तक अगर पहुंच पाएंगे, तो आप देखेंगे कि इसकी प्रकृति भौतिक नहीं है। इसका मतलब है इसका अस्तित्व नहीं है, पर यह धुंधला है, अपारदर्शी है। ऐसा कैसे हो सकता है? यह आपके तार्किक दिमाग के दायरे में नहीं है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि इस पूरी रचना को इंसान के तर्कों पर खरा उतरना होगा, लेकिन जीवन को देखने का यह बेहद सीमित तरीका है। संपूर्ण सृष्टि मानव बुद्धि के तर्कों पर कभी खरी नहीं उतरेगी। आपका दिमाग इस सृष्टि में फिट होसकता है, यह सृष्टि आपके दिमाग में कभी फिट नहीं हो सकती। तर्क इस अस्तित्व के केवल उन पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं, जो भौतिक हैं। एक बार अगर आपनेभौतिक पहलुओं को पार कर लिया, तो आपके तर्क पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे।योगिक विद्या में विज्ञान को कहानियों के रूप में प्रकट किया गया है। लेकिन हमें हमेशा यह बताया गया हैकि हमें किसी विद्या पर तब तक यकीन नहीं करना चाहिए, जब तक हम खुद उसका अनुभव न कर लें। एक बार जब मैंने कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों को अपने आंतरिक अनुभव के आधार पर इस अस्तित्व की प्रकृति के बारे में बताया,तो उन्होंने कहा – सद्गुरु, आप जो कह रहे हैं, अगर आप उसकी गणितीय व्याख्या कर दें, तो आपके इस विचार को नोबेल पुरस्कार तक दिया जा सकता है। मैं इसके लिए कोई गणितीय समीकरण नहीं लिखना चाहता, लेकिन मेरे लिए यह सत्य है और मैं जो भी हूं, इसने मुझे पूरी तरह से रूपांतरित करके रख दिया है। जो कुछ भी मैं था, वह सब कुछ बदल गया, जब मैंने अपने भीतर उस आयाम को स्पर्श किया। यह सिद्धांत बिल्कुल सही है और हमने अपने भीतर साबित किया है कियह सत्य है। जिस चीज को साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने खरबों डॉलर के यंत्र बनाए, उसी चीज को आपके भीतर आपके अपनेअनुभवों में साबित किया जा सकता है, बशर्ते आप इस जीवन की गहराई में उतरने को इच्छुक हों। अगर आप गहराई से देखें तो आप पाएंगे कि इस ब्रह्मांड की हर चीज के बारे में अनुमान के आधार परनिष्कर्ष निकाला गया है। यहां तक कि विज्ञान भी अनुमान के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल रहा है।भौतिक से परे होने के कारण शून्य तत्व को सीधे तौर पर दर्शाया नहीं जा सकता। यही कारण है कि योगिक विज्ञान ने हमेशा कहानियों के माध्यम से इसकी ओर इंगित किया है। शिव और शक्ति का मेल, आभूषणों और अलंकारों से सजा शिव का रूप इसी शून्य की ओर संकेत करते हैं। हमें सद्गुरु बता रहे हैं शिव के रूप और उनके महामंत्र ॐ नम: शिवाय के बारे में…
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